रामधारी सिंह 'दिनकर' जी की जीवनी | Ramdhari Singh "dinkar Biography in Hindi
रामधारी सिंह 'दिनकर' जी की जीवनी | Ramdhari Singh "dinkar Biography in Hindi
गुरुवार, 8 नवंबर 2018
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रामधारी सिंह 'दिनकर' जी की जीवनी | Ramdhari Singh "dinkar Biography in Hindi
‘‘आजादी के समय और चीन के हमले के समय दिनकर ने अपनी कविताओं के माध्यम से लोगों के बीच राष्ट्रीय चेतना को बढ़ाया.’’
मशहूर कवि प्रेम जनमेजय.
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की जीवनी
नाम रामधारी सिंह ‘दिनकर’
जन्म 23 सितंबर 1908.
जन्म स्थान सिमरिया घाट, जिला बेगुसराय, बिहार, भारत.
रामधारी सिंह दिनकर की मृत्यु 24 अप्रैल 1974.
रामधारी सिंह दिनकर की मृत्यु स्थान मद्रास, तमिलनाडु, भारत.
पिता का नाम बाबु रवि सिंह.
माता का नाम मनरूप देवी.
राष्ट्रीयता भारतीय
पारिवारिक पृष्ठभूमि दिनकर के परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी ख़राब थी कि, जब वे Mokama High School में पढ़ते थे, तब इनके पास पहनने के लिए जूते भी नहीं थे. छात्रावास की फीस भरने के लिए पैसे न होने के कारण वहां ठहराव नहीं कर सकते थे. इसलिए उनका स्कूल में पूरे पीरियड अटेंड करना संभव नहीं था. उनको लंच ब्रेक के बाद नाव से वापस गाँव जाना पड़ता था.
शिक्षा बी. ए. इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान पटना विश्वविद्यालय; संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का गहन अध्ययन, वे अल्लामा इकबाल और रवींद्रनाथ टैगोर को अपना प्रेरणा स्रोत मानते थे.
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ (जीवन परिचय)
हिन्दी के प्रसिद्ध कवियों में से एक राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को सिमरिया नामक स्थान पे हुआ। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की मृत्यु 24 अप्रैल, 1974 को चेन्नई) में हुई ।
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जीवन परिचय :
हिन्दी के सुविख्यात कवि रामाधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 ई. में सिमरिया, ज़िला मुंगेर (बिहार) में एक सामान्य किसान रवि सिंह तथा उनकी पत्नी मन रूप देवी के पुत्र के रूप में हुआ था। रामधारी सिंह दिनकर एक ओजस्वी राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत कवि के रूप में जाने जाते थे। उनकी कविताओं में छायावादी युग का प्रभाव होने के कारण श्रृंगार के भी प्रमाण मिलते हैं।
दिनकर के पिता एक साधारण किसान थे और दिनकर दो वर्ष के थे, जब उनका देहावसान हो गया। परिणामत: दिनकर और उनके भाई-बहनों का पालान-पोषण उनकी विधवा माता ने किया। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का बचपन और कैशोर्य देहात में बीता, जहाँ दूर तक फैले खेतों की हरियाली, बांसों के झुरमुट, आमों के बगीचे और कांस के विस्तार थे। प्रकृति की इस सुषमा का प्रभाव दिनकर के मन में बस गया, पर शायद इसीलिए वास्तविक जीवन की कठोरताओं का भी अधिक गहरा प्रभाव पड़ा।
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ शिक्षा :
संस्कृत के एक पंडित के पास अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्रारंभ करते हुएराष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने गाँव के प्राथमिक विद्यालय से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की एवं निकटवर्ती बोरो नामक ग्राम में राष्ट्रीय मिडल स्कूल जो सरकारी शिक्षा व्यवस्था के विरोध में खोला गया था, में प्रवेश प्राप्त किया। यहीं से राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के मनो मस्तिष्क में राष्ट्रीयता की भावना का विकास होने लगा था। हाई स्कूल की शिक्षा राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने मोकामाघाट हाई स्कूल से प्राप्त की। इसी बीच इनका विवाह भी हो चुका था तथा ये एक पुत्र के पिता भी बन चुके थे। 1928 में मैट्रिक के बाद दिनकर ने पटना विश्वविद्यालय से 1932 में इतिहास में बी. ए. ऑनर्स किया।
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ व्यवसाय
1934 से 1947 तक बिहार सरकार की सेवा में सब-रजिस्टार और प्रचार विभाग के उपनिदेशक.
1950 से 1952 तक मुजफ्फरपुर कालेज में हिन्दी के विभागाध्यक्ष.
1952 से 1964 राज्यसभा का सदस्य.
1964-1965 कुलपति भागलपुर विश्वविद्यालय.
1965 से 1971 तक भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार.
हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार.
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ प्रमुख रचनाएँ
रश्मिरथी.
परशुराम की प्रतीक्षा.
उर्वशी.
संस्कृति के चार अध्याय.
कुरुक्षेत्र.
रेणुका.
हुंकार.
हाहाकार.
चक्रव्यूह.
आत्मजयी.
वाजश्रवा के बहाने.
उपलब्धियां
‘राष्ट्रकवि’.
राष्ट्रवादी, प्रगतिशील, विद्रोही, आधुनिक युग के श्रेष्ठ ‘वीर रस’ के कवि.
पद्म विभूषण 1959.
‘संस्कृति के चार अध्याय’ के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार 1959.
भागलपुर विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलाधिपति और बिहार के राज्यपाल जाकिर हुसैन, जो बाद में भारत के राष्ट्रपति बने, ने उन्हें डॉक्ट्रेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया.
1968 में राजस्थान विद्यापीठ ने उन्हें साहित्य-चूड़ामणि से सम्मानित.
उर्वशी को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार 1972.
‘कुरुक्षेत्र’ को विश्व के 100 सर्वश्रेष्ठ काव्यों में 74वाँ स्थान.
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ उलेखनीय तथ्य
प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ काशी प्रसाद जायसवाल इनको पुत्र की तरह प्यार करते थे. उन्होंने इनके कवि बनने के शुरुवाती दौर में हर तरीके से मदद की. परन्तु उनका भी 1937 में निधन हो गया. जिसका इन्हें बहुत गहरा धक्का लगा. इन्होने संवेदना व्यक्त की थी कि, “जायसवाल जी जैसा इस दुनिया में कोई नहीं था.”
रेणुका (1935) और हुंकार की कुछ रचनाऐं यहाँ-वहाँ प्रकाश में आईं और अग्रेज़ प्रशासकों को समझते देर न लगी कि वे एक ग़लत आदमी को अपने तंत्र का अंग बना बैठे हैं और दिनकर की फ़ाइल तैयार होने लगी, बात-बात पर क़ैफ़ियत तलब होती और चेतावनियाँ मिला करतीं.
चार वर्ष में बाईस बार उनका तबादला किया गया.मशहूर कवि प्रेम जनमेजय के अनुसार दिनकर जी ने गुलाम भारत और आजाद भारत दोनों में अपनी कविताओं के जरिये क्रांतिकारी विचारों को विस्तार दिया. जनमेजय ने कहा, ‘‘आजादी के समय और चीन के हमले के समय दिनकर ने अपनी कविताओं के माध्यम से लोगों के बीच राष्ट्रीय चेतना को बढ़ाया.’’
हरिवंश राय बच्चन ने कहा कि, “दिनकरजी को एक नहीं, बल्कि गद्य, पद्य, भाषा और हिन्दी-सेवा के लिये अलग-अलग चार ज्ञानपीठ पुरस्कार दिये जाने चाहिये.”
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ मरणोपरान्त सम्मान
1999 में भारत सरकार ने राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की स्मृति में डाक टिकट जारी किया.
सिंहासन
जन्म शताब्दी 2008 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार ने उनकी भव्य प्रतिमा का बेगुसराय बिहार में अनावरण किया.
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ पद :
पटना विश्वविद्यालय से बी. ए. ऑनर्स करने के बाद अगले ही वर्ष एक स्कूल में यह प्रधानाध्यापक नियुक्त हुए, पर 1934 में बिहार सरकार के अधीन इन्होंने सब-रजिस्ट्रार का पद स्वीकार कर लिया। लगभग नौ वर्षों तक वह इस पद पर रहे और राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का समूचा कार्यकाल बिहार के देहातों में बीता तथा जीवन का जो पीड़ित रूप उन्होंने बचपन से देखा था, उसका और तीखा रूप उनके मन को मथ गया।
फिर तो ज्वार उमरा और रेणुका, हुंकार, रसवंती और द्वंद्वगीत रचे गए। रेणुका और हुंकार की कुछ रचनाऐं यहाँ-वहाँ प्रकाश में आईं और अग्रेज़ प्रशासकों को समझते देर न लगी कि वे एक ग़लत आदमी को अपने तंत्र का अंग बना बैठे हैं
और दिनकर की फ़ाइल तैयार होने लगी, बात-बात पर क़ैफ़ियत तलब होती और चेतावनियाँ मिला करतीं। चार वर्ष में बाईस बार उनका तबादला किया गया।
1947 में देश स्वाधीन हुआ और वह बिहार विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्रध्यापक व विभागाध्यक्ष नियुक्त होकर मुज़फ़्फ़रपुर पहुँचे। 1952 में जब भारत की प्रथम संसद का निर्माण हुआ, तो उन्हें राज्यसभा का सदस्य चुना गया और वह दिल्ली आ गए। दिनकर 12 वर्ष तक संसद-सदस्य रहे, बाद में उन्हें सन 1964 से 1965 ई. तक भागलपुर विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया। लेकिन अगले ही वर्ष भारत सरकार ने उन्हें 1965 से 1971 ई. तक अपना हिन्दी सलाहकार नियुक्त किया और वह फिर दिल्ली लौट आए।
दिनकर के प्रथम तीन काव्य-संग्रह प्रमुख हैं–
‘रेणुका’ (1935 ई.), ‘हुंकार’ (1938 ई.) और ‘रसवन्ती’ (1939 ई.) उनके आरम्भिक आत्म मंथन के युग की रचनाएँ हैं। इनमें दिनकर का कवि अपने व्यक्ति परक, सौन्दर्यान्वेषी मन और सामाजिक चेतना से उत्तम बुद्धि के परस्पर संघर्ष का तटस्थ द्रष्टा नहीं, दोनों के बीच से कोई राह निकालने की चेष्टा में संलग्न साधक के रूप में मिलता है।
रेणुका – में अतीत के गौरव के प्रति कवि का सहज आदर और आकर्षण परिलक्षित होता है। पर साथ ही वर्तमान परिवेश की नीरसता से त्रस्त मन की वेदना का परिचय भी मिलता है।
हुंकार – में कवि अतीत के गौरव-गान की अपेक्षा वर्तमान दैत्य के प्रति आक्रोश प्रदर्शन की ओर अधिक उन्मुख जान पड़ता है।
रसवन्ती - में कवि की सौन्दर्यान्वेषी वृत्ति काव्यमयी हो जाती है पर यह अन्धेरे में ध्येय सौन्दर्य का अन्वेषण नहीं, उजाले में ज्ञेय सौन्दर्य का आराधन है।
सामधेनी (1947 ई.)- में दिनकर की सामाजिक चेतना स्वदेश और परिचित परिवेश की परिधि से बढ़कर विश्व वेदना का अनुभव करती जान पड़ती है। कवि के स्वर का ओज नये वेग से नये शिखर तक पहुँच जाता है
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ कविता संग्रह
- प्रणभंग / रामधारी सिंह "दिनकर" (1929)
- रेणुका / रामधारी सिंह "दिनकर" (1935)
- हुंकार / रामधारी सिंह "दिनकर" (1938)
- रसवन्ती / रामधारी सिंह "दिनकर" (1939)
- द्वन्द्वगीत / रामधारी सिंह "दिनकर" (1940)
- कुरुक्षेत्र / रामधारी सिंह "दिनकर" (1946)
- धूपछाँह / रामधारी सिंह "दिनकर" (1946)
- सामधेनी / रामधारी सिंह "दिनकर" (1947)
- बापू / रामधारी सिंह "दिनकर" (1947)
- इतिहास के आँसू / रामधारी सिंह "दिनकर" (1951)
- धूप और धुआँ / रामधारी सिंह "दिनकर" (1951)
- रश्मिरथी / रामधारी सिंह "दिनकर" (1954)
- नीम के पत्ते / रामधारी सिंह "दिनकर" (1954)
- दिल्ली / रामधारी सिंह "दिनकर" (1954)
- सूरज का ब्याह / रामधारी सिंह "दिनकर" (1955)
- नील कुसुम / रामधारी सिंह "दिनकर" (1955)
- नये सुभाषित / रामधारी सिंह "दिनकर" (1957)
- सीपी और शंख / रामधारी सिंह "दिनकर" (1957)
- कविश्री / रामधारी सिंह "दिनकर" (1957)
- परशुराम की प्रतीक्षा / रामधारी सिंह "दिनकर" (1963)
- कोयला और कवित्व / रामधारी सिंह "दिनकर" (1964)
- मृत्तितिलक / रामधारी सिंह "दिनकर" (1964)
- हारे को हरि नाम / रामधारी सिंह "दिनकर" (1970)
- मिट्टी की ओर (1946)
- चित्तौर का साका (1948)
- अर्धनारीश्वर (1952)
- रेती की फूल (1954
- हमारी सांस्कृतिक एकता (1954)
- भारत की सांस्कृतिक कहानी (1955)
- राज्यभाषा और राष्ट्रीय एकता (1955)
- उजली आग (1956)
- संस्कृति के चार अध्याय (1956)
- काव्य की भूमिका (1958)
- पंत, प्रसाद और मैथिलीशरण (1958)
- वेणु वान (1958)
- धर्म, नैतिकता और विज्ञान (1959)
- वट-पीपल (1961)
- लोकदेव नेहरू (1965)
- शुद्ध कविता की खोज (1966)
- साहित्यमुखी (1968)
- हे राम! (1968)
- संस्मरण और श्रद्धांजलियन (1970)
- मेरी यत्रायें (1971)
- भारतीय एकता (1971)
- दिनकर की डायरी (1973)
- चेतना की शिला (1973)
- विवाह की मुसीबतें (1973) और
- आधुनिक बोध (1973)
- साहित्यिक आलोचना
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ कविता संग्रह
काव्य कृतियाँ | गद्य कृतियाँ |
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रामधारी सिंह दिनकर का मृत्यु कब हुआ था?
रामधारी सिंह दिनकर का निधन 24 अप्रैल, 1974 को हुआ था
रामधारी सिंह दिनकर की पत्नी का नाम क्या था?
रामधारी सिंह दिनकर की पत्नी का नाम श्यामावती था|
रामधारी सिंह दिनकर की मृत्यु कब हुई?
रामधारी सिंह दिनकर का निधन 24 अप्रैल, 1974 को हुआ था
रामधारी सिंह दिनकर के माता पिता का नाम क्या था?
रामधारी सिंह दिनकर जी के माता का नाम श्रीमती मनरूप देवी था | तथा इनके पिता का नाम श्री रवि सिंह था|
रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएँ?
अर्धनारीश्वर, मिट्टी की ओर, रेती के फूल, बट पीपल, उजली आग, भारतीय संस्कृति के चार अध्याय, प्राण भंग, रेणुका, रसवंती सामधेनी, बादू , हुंकार, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा, कुरुक्षेत्र और उर्वशी, मिर्च का मजा, सूरज का ब्याह, चित्तौड़ का सांका आदि |
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का age ?
65 years ( 23 सितंबर 1908 ई० ( संवत् 1965 वि.) – 24 अप्रैल सन् 1974 (संवत् 2031 बि०))
Ramdhari Singh Dinkar Awards in Hindi
उर्वशी (राष्ट्रीय ज्ञान पीठ का पुरस्कार, पदम भूषण), संस्कृत के चार अध्याय (साहित्य अकादमी, द्विवेदी पदक,डी० लिट्०)
Ramdhari Singh Dinkar famous Books?
रश्मिरथी, कुरुक्षेत्र, उर्वशी, संस्कृत के चार अध्याय आदि
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