यशपाल का जीवन परिचय एवं साहित्य की प्रमुख विशेषताएं | Yashpal ka jivan parichay | Biography of Yashpal in Hindi
यशपाल का जीवन परिचय एवं साहित्य की प्रमुख विशेषताएं | Yashpal ka jivan parichay | Biography of Yashpal in Hindi
जीवन परिचय बिंदु | यशपाल जीवन परिचय |
पूरा नाम | यशपाल |
जन्म | 3 दिसम्बर, 1903 |
जन्म स्थान | फ़िरोजपुर छावनी, पंजाब, भारत |
पहचान | उपन्यासकार, कहानीकार |
अवधि/काल | आधुनिक काल में प्रगतिवाद |
यादगार कृतियाँ | झूठा सच, दिव्या |
यशपाल का जीवन परिचय, जीवनी, बायोग्राफी
यशपाल का जन्म 3 दिसम्बर 1903 में फिरोजपुर छावनी के एक खत्री परिवार में हुआ था. उनके पिता हीरालाल एवं माता प्रेमा देवी आर्यसमाजी थे. पंजाब के क्रन्तिकारी नेता लाला लाजपतराय से उनका सम्पर्क हुआ तो वे बड़े होकर स्वाधीनता आंदोलन से भी जुड़े.
भगतसिंह से यशपाल की घनिष्ठता थी. उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज से बीए किया तथा नाटककार उदयशंकर से उन्हें लेखन की प्रेरणा मिली. देशभक्त क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद, सुखदेव से प्रेरित होकर इन्होने क्रन्तिकारी गतिविधियों में भाग लिया.
जेल गये और वहां बरेली जेल में प्रकाशवती से विवाह किया. वे एक सफल कहानीकार, निबंधकार, नाटककार रहे हैं. यशपाल मार्क्सवादी विचारधारा से प्रेरित रहे हैं. अतः उनकी रचनाओं पर मार्क्सवाद का प्रभाव हैं. वे एक यथार्थवादी रचनाकार रहे हैं. वे सामाजिक रूढ़ियो, पुरातनपंथी विचारों के घोर विरोधी रहे हैं, वे प्रगतिशील विचारक थे, अतः उनका व्यक्तित्व झलकता हैं.
वे एक निर्भीक वक्ता, स्पष्टवादी और राष्ट्रवादी लेखक थे. अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन करते हुए अनेक बार जेल गये. क्रांतिकारी दल से जुड़े रहने के कारण उनमें थोड़ी उग्रता देखी गई. यशपाल भारतीयता के साथ साथ पाश्चात्य विचारधारा से भी प्रभावित रहे हैं.
पश्चिम के खुलेपन से और व्यक्ति स्वातंत्र्य से भी उनका लगाव रहा हैं. उन्होंने धर्म की रुढिवादिता, अन्धविश्वास, सामाजिक कुरीतियों का सतत विरोध किया हैं, पर समाज के नीचे दर्जे के लोग व मध्यमवर्गीय लोगों के प्रति उनकी पूर्ण सहानुभूति रही है, इसीलिए उनका समग्र लेखन आम इंसान से जुड़ा हुआ हैं.
यशपाल को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में कौन सा पुरस्कार प्राप्त हुआ
यशपाल द्वारा लिखित कौन सा उपन्यास नायिका प्रधान है?
कहानीकार यशपाल की कहानियों पर किस विचारधारा का प्रभाव दिखाई देता है?
यशपाल की रचनाएं
यशपाल एक समर्थ लेखक रहे हैं. 1940 से 1976 तक उनके 16 कहानी संग्रह प्रकाशित हुए हैं. 17 वाँ संग्रह मृत्युप्रान्त प्रकाश में आया. जिनमें कुल 206 कहानियाँ संग्रहित हैं. आपने तीन एकांकी, 10 निबंध संग्रह, 3 संस्मरण पुस्तकें तथा 8 बड़े व 3 लघु उपन्यास लिखे, जो प्रकाशित हो चुके हैं. सिंहावलोकन नाम से आपने अपनी आत्मकथा लिखी. आपने विप्लव नामक पत्रिका का सम्पादन भी किया, यशपाल की प्रमुख रचनाओं का नामोउल्लेख इस प्रकार हैं.
- कहानी संग्रह – तर्क का तूफान, भस्मावृत, धर्मयुद्ध, ज्ञानदास, फूलों का कुर्ता, पिंजरे की उड़ान, तुमने क्यों कहा मैं सुंदर हूँ, चिंगारी आदि.
- उपन्यास – दादा कामरेड, देशद्रोही, पार्टी कामरेड, अमिता, मनुष्य के रूप, झूठा सच, बारह घंटे, दिव्या आदि.
- निबंध संग्रह– चक्कर, क्लब, न्याय का संघर्ष, बात बात में, पत्र पत्रिका के दर्जनों लेख.
- यात्रा संस्मरण – राह बीती, लोहे की दीवारों के दोनों और आदि. कुछ अनुदित रचनाएं भी मिलती है, जिनमें जनानी, ड्योढ़ी, पक्का कदम जैसे उपन्यास हैं.
यशपाल की कहानीकला
यशपाल ने अपने कथा साहित्य में सामाजिक यथार्थ का चित्रण किया हैं. उन्होंने मिथ्या नैतिक आदर्शों पर तीव्र कटाक्ष किया हैं. उनकी कहानियों में सामाजिक स्वतंत्रता, आर्थिक विषमता तथा यौन भावना की प्रधानता देखी जाती हैं. उनकी कहानियों का कथानक चुस्त, व्यंजक और वास्तविक चरित्रों पर आधारित होते हैं. जैसे उनकी कहानी दुःख में यह सिद्ध किया है कि निम्न वर्गीय श्रमजीवी व्यक्ति का दुःख और परोपजीवी उच्चवर्ग के व्यक्ति का दुःख एक नहीं होता.
एक का दुःख आर्थिक स्थितियों से उपजा है, तो दूसरे का दुःख काल्पनिक हैं. परदा कहानी भी फटेहाल पीरबख्श के कुनबे की त्रासदी और कर्ज लेने की पीड़ा को प्रकट करती हैं. यशपाल सच्चे अर्थों में यथार्थवादी एवं सामाजिक कहानीकार हैं. सपाट बयानी उनकी विशेषता हैं. उसमें मनोवैज्ञानिक जटिलता, थोपे हुए दर्शन का प्रभाव नहीं दिखता. वे प्रेमचंद परम्परा के सामाजिक कथा कार कहे जा सकते हैं.
डॉ भगवत्स्वरूप मिश्र के अनुसार इनकी कहानियों में नैतिक मान्यताओं का असामंजस्य भी निर्ममता से व्यक्त हुआ हैं. ऐसा करते समय यशपालजी ने कोई समाधान नहीं दिया हैं, पर यथार्थ की क्रूरता पर व्यंग्य अवश्य किया हैं. यशपाल की कहानियों में मानवीय- अमानवीय पक्ष को कुशलता से उद्घाटित किया गया हैं.
यशपाल ने जीवन की विडम्बनाओं व विद्रूपताओं का बड़ी नग्नता के साथ चित्रण किया हैं. उनमें नाटकीय आरोह अवरोह के दर्शन होते हैं. उनकी कहानियाँ विचारप्रधान हैं. कथानक साधारण गति से आगे बढ़ता हैं, उसमें जिज्ञासा व रोमांच हैं. घटनाओं का चित्रण अत्यंत स्वाभाविक ढंग से हुआ हैं.
यशपाल की समग्र कहानियों को पांच भागों में विभक्त कर सकते हैं. अर्थ विषयक, यौन विषयक, धार्मिक रूढ़ियों की विरोध प्रधान, समाज विषयक तथा कला व साहित्य विषयक कहानियाँ. मार्क्सवाद का प्रभाव सर्वत्र परिलक्षित होता हैं. इनकी कहानियाँ तो दुनियाँ, रोटी का मोल, महादान, मक्खी या मकड़ी आर्थिक विषमता परक हैं. उनकी कहानियों में अपराधियों की दूषित मनोवृत्ति, झूठ, मक्कारी, चोर बाजारी, घूसखोरी का चित्रण हुआ हैं. च्रित्राकंन एवं वातावरण चित्रण भी यथार्थ व सटीक हैं.
लेखक यशपाल की कहानियों का शिल्पविधान सुलझा हुआ हैं. उसमें प्रतीकात्मकता या दुरूह भाषा का कही प्रयोग नहीं हुआ हैं. यथास्थान व्यंग्य विनोद, तीखापन एवं स्पष्ट भाषा प्रयुक्त हुई हैं. कहीं कहीं अंग्रेजी उर्दू शब्दों का भी प्रयोग हुआ हैं. भाषा शैली चित्रात्मक, वर्णनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक पद्धति पर आधारित हैं. पात्रानुकूल भाषा एवं कहानी की उद्देश्यनिष्ठता सर्वव्याप्त हैं.
पुरस्कार
देव पुरस्कार | 1955 |
सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार | 1969 |
पद्म भूषण | 1970 |
मंगला प्रसाद पारितोषिक | 1971 |
साहित्य अकादमी पुरस्कार | 1976 |
मृत्यु
यशपाल जी उत्कृष्ट श्रेणी के उपन्यासकार थे. इन्होने शहीद भगतसिंह के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई भी लड़ी. पद्मभूषण यशपाल जी की मृत्यु 24 जुलाई 2017 को नोएडा, उत्तर प्रदेश के एक निजी अस्पताल में हुई.
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