विजय लक्ष्मी पंडित की जीवनी | Vijaya Lakshmi Pandit Biography in Hindi

विजय लक्ष्मी पंडित की जीवनी | Vijaya Lakshmi Pandit Biography in Hindi

पूरा नाम  : विजया लक्ष्मी नेहरु पंडित
जन्म       : 18 अगस्त 1900
जन्मस्थान : इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश)
पिता       : मोतीलाल नेहरु
माता      : स्वरूपरानी नेहरु
विवाह    : रंजित सीताराम पंडित के साथ

विजया लक्ष्मी नेहरु पंडित भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलालह नेरू की बहन थी। भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में विजय लक्ष्मी पंडित ने अपना अमूल्य योगदान दिया।

विजय लक्ष्मी के पिता, मोतीलाल नेहरू (1861-1931) एक धनि बैरिस्टर थे जो कश्मीरी पंडितो के समुदाय से सम्बन्ध रखते थे, आज़ादी के लिये संघर्ष करते समय उन्होंने दो बार बी हर्तीय राष्ट्रिय कांग्रेस की अध्यक्ष बनकर सेवा की। उनकी माता, स्वरूपरानी थुस्सू (1868-1938), मोतीलाल की दूसरी पत्नी थी और वह भी लाहौर के कश्मीरी ब्राह्मण से सम्बन्ध रखती थी।

मोतीलाल नेहरु की पहली पत्नी उनके बच्चे को जन्म देते समय ही मर चुकी थी। विजय लक्ष्मी अपनी माँ के तीन बच्चो से में दूसरी है, जवाहर उनसे 11 साल बड़े है। जबकि उनकी छोटी बहन कृष्णा हुथीसिंग एक विख्यात लेखिका बनी और अपने भाइयो के उपर उन्होंने बहोत सी किताबो का प्रकाशन भी किया।

1921 में उनका विवाह रंजित सीताराम पंडित से हुआ, जो काठियावड के सफल महाराष्ट्रियन बैरिस्टर थे और अपनी स्कूल के विद्वान थे, उन्होंने कल्हण के इतिहास राजतरंगिनी को संस्कृत से इंग्लिश में प्रकाशित भी किया था।

भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में सहायता करने की वजह से उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा था और 1944 को लखनऊ जेल में डाला गया, वह अपने पीछे तीन बच्चो, चंद्रलेखा मेहता, नयनतारा सिंगल और रीटा दार को छोड़ गयी थी। वही 1990 में उनकी मृत्यु हो गयी थी। उनकी बेटी नयनतारा सिंगल जो उनकी मृत्यु के बाद अपनी माता के घर में ही देहरादून में रहने लगी थी, वह एक प्रसिद्ध साहित्यकार है।

एक तो पति वियोग का दुःख , दुसरे रुढ़िवादी नारी-विरोधी भारतीय कानूनों के प्रति आक्रोश | विजयलक्ष्मी पंडित क्षोभ से भर उठी | फिर तो उनके भीतर देशभक्त और विद्रोहिणी नारी देश की आजादी के साथ भारतीय नारी को इन क्रूर एवं निक्कमे कानूनों के चंगुल से बचाने के लिए कमर कसकर तैयार हो गयी | कांग्रेस के आलावा अनेक महिला संस्थानों और समाज कल्याण संस्थानों से संबध रहकर भारतीय नारी की स्थिति और सामाजिक नीतियों में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने के लिए निरंतर काम करती रही | “अखिल भारतीय महिला सम्मेलन” के साथ तो वे प्रारम्भ से ही थी ओर सन 1940-42 में दो वर्ष तक इस सर्वोच्च महिला संस्था की अध्यक्षा भी रह चुकी थी |

गांधीजी से उनकी पहली भेंट 1919 में हुई थी | गांधीजी के जीवन पर्यन्त निकट रही | उनसे वे इतनी अधिक प्रभावित थी कि कई बातो में मतभेद के बावजूद उनके निर्देश के बिना कोई कदम नही उठाती थी | पुलिस जब आनन्द भवन पर छापे मारती थी जबरन जुर्माने वसूलती थी या सम्मानित व्यक्तियों का अपमान करती थी तो स्वभावनुसार विजयलक्ष्मी (Vijaya Lakshmi Pandit) क्रोध से भर उठती थी पर गांधीजी के निर्देश का ध्यान कर सब कुछ धैर्य एवं शान्ति से सहन कर लेती थी | असहयोग आन्दोलन के दिनों पिता एवं भाई के जेल जाने पर आनन्द भवन जो कांग्रेस का गढ़ था के संचालन का भार उनके कन्धो पर ही आ पड़ा था |

राजनितिक जीवन

कैबिनेट के पद को ग्रहण करने वाली वह पहली भारतीय थी। 1937 के चुनाव में विजयलक्ष्मी उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्य चुनी गयी। उन्होंने भारत की प्रथम महिला मंत्री के रूप में शपथ ली। मंत्री स्तर का दर्जा पाने वाली भारत की वह प्रथम महिला थी।

वर्ष 1945 में विजयलक्ष्मी अमेरिका गयी और अपने भाषणों के द्वारा उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में जोरदार प्रचार किया। 1946 में वे पुनः उत्तर प्रदेश के विधान सभा की सदस्य और राज्य सरकार में मंत्री बनी। इसके साथ ही 1947 से 1949 तक वह सोवियत संघ की, 1949 से 1951 तक यूनाइटेड स्टेट और मक्सिको की, 1955 से 1961 तक आयरलैंड की भारतीय ब्रांड एम्बेसडर बनी।

इसके साथ ही विजयलक्ष्मी पंडित ने रूस, अमेरिका, मैक्सिको, आयरलैंड और स्पेन में भारत के राजदूत और इंग्लैंड में हाई कमीशनर के पद पर कार्य किया। 1952 और 1964 में वे लोकसभा की सदस्य चुनी गयी। वे कुछ समय तक महाराष्ट्र की राज्यपाल भी बनी रही थी।

1979 में उन्हें UN ह्यूमन राइट्स कमीशन में भारत का प्रतिनिधित्व घोषित किया और तभी से वे समाजसेवा ही कर रही है।

भारत के लिये नेहरु परिवार ने जो कुछ भी कार्य किया है राष्ट्र उसे हमेशा याद रखेगा। महात्मा गांधी जी का प्रभाव विजय लक्ष्मी पंडित पर बहोत ज्यादा था। वह गांधीजी से प्रभावित होकर ही जंग ए आज़ादी में कूद पड़ी थी। गांधीजी के हर आन्दोलन में विजयलक्ष्मी पंडित आगे रहती, जेल जाती, रिहा होती और फिर से आन्दोलन में जुट जाती। विजयलक्ष्मी एक पढ़ी-लिखी और प्रबुद्ध महिला थी और विदेशो में आयोजित विभिन्न सम्मेलनों में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व भी किया था।

निधन 
01 दिसम्बर 1990 को उनका निधन हो गया | अपने अंतिम समय में वे प्रचार से दूर देहरादून के अपने घर में कुछ आत्मीय मित्रो और लडकियों के साथ शांत जीवन गुजार रही थी पर उन्होंने सार्वजनिक जीवन पुरी तरह छोड़ा नही था | कभी कभी महत्वपूर्ण समारोहों में शामिल होती थी | कभी वक्तव्य भी देती पर अक्सर चुप रहती | इतने बुढापे में भी खुलकर हंसती थी | दुःख के क्षणों में भी हंसने वाली और गहरे स्पर्श वाली जो हर स्थिति में अपने आस-पास के वातावरण को जीवंत रखती थी |


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