P. T. Usha Biography in Hindi | उड़नपरी पी.टी.उषा की जीवनी

P. T. Usha Biography in Hindi | उड़नपरी पी.टी.उषा की जीवनी


पी.टी.उषा (P. T. Usha) भारत में ट्रैक क्वीन , एशिया की स्प्रिंट , उड़नपरी , गोल्डनगर्ल आदि नामो से जानी जाती है | पी.टी.उषा केरल में प्योली नामक गाँव में 20 मई 1964 में जन्मी थी | कई सम्मान एवं उपाधियाँ इनके नाम है | सियोल में हुए 10वे एशियाई खेलो में उन्होंने जो सफलता प्राप्त के है या फिर प्रतिष्टा के जिस शिखर पर पहुची है उस पर प्रत्येक भारतवासी गर्व महसूस कर सकते है | एक साथ चार स्वर्ण पदक और एक रजत पदक जीतना अपने आप में गौरवपूर्ण उपलब्धी मानी जा सकती है |

इस बात को नकारा नही जा सकता है कि सियोल में सारी सफलता पी.टी.उषा (P. T. Usha) तक ही सिमीत रही | 200 मी , 400मी , 400 मी.पगबाधा  और 1600 , 4500 मीटर रिले में स्वर्ण पदक जीतने वाली यह खिलाड़ी 100 मीटर में केवल रजत पदक ही प्राप्त कर सकी तथा एशिया की सबसे तेज धावक का गौरव प्राप्त नही कर सकी | यह गौरव मिला फिलिपिनी सुन्दरी लीडिया दिवेगो को |

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम बार उन्होंने 1980 में मोस्को ओलम्पिक्स में भाग लिया पर वे कुछ हासिल नही कर पायी | 1982 में नई दिल्ली एशियाड में 100 मीटर तथा 200 मीटर की दौड़ में दो रजत पदक जीते | 1983 में कुवैत में आयोजित एशिया ट्रेक एंड फील्ड चैंपियनशिप में एशिया का रिकॉर्ड तोडा तथा स्वर्णपदक प्राप्त किया | लोंस एंजेल्स में आयोजित ओलम्पिक में वह 400 मीटर की दौड़ के फाइनल में पहुचने वाली प्रथम महिला थी |

जकार्ता में छठी ए.एफ.सी, में उषा (P. T. Usha) ने 5 स्वर्णपदक जीते | सियोल में आयोजित 10वे एशियाई गेम्स में उषा को 4 स्वर् तथा 1 रजत पदक मिले | ट्रेक एंड फील्ड की सभी प्रतियोगिताओ में उषा ने सब पुराने रिकार्ड्स तोड़े | 1996 में अटलांटा ओलम्पिक में अंतिम बार भाग लिया | खेमो के प्रति अत्यधिक समपर्ण होने के कारण पी.टी.उषा ने 1991 में विवाह के बाद केवल 1992 के ओलम्पिक में भाग नही लिया अन्यथा ये सभी प्रतियोगिताओ में लगातार भाग लेती रही और स्वर्ण पदक दिलवाकर भारत के गौरव को बढाती रही |

P. T. Usha Biography in Hindi |

पी.टी.उषा अभ्यास के लिए पोलपट्टम के समुद्री किनारों पे मीलो दौड़ा करती थी | सन 1978 ई. में किलवान में हुयी अंतर्राष्ट्रीय एथेलेटिक प्रतियोगिता में 14 साल की इस बालिका ने 100 मीटर दौड़ को 13.1 सैकैंड में पूरा किया ,बस उसके बाद तो प्रदर्शन में निरंतर सुधार और निखार ही आता गया | वे एक एक पायदान उपर चढने लगी | इसी बीच कन्नूर स्पोर्ट्स स्कूल में वैज्ञानिक ढंग से प्रशिक्षण प्राप्त हुआ और फिर ओ.एम्.नमबियार जैसे प्रशिक्षक से प्रशिक्षण प्राप्त कने का सुख |

ऐसा माना जाता है कुछ रत्न ऐसे होते है जिन्हें परखने के लिए जौहरी की आवश्यकता नही होती है पी.टी.उषा इसी प्रकार की रत्न थी | उन्होंने 11वे बीजिंग एशियाई खेलो में 3 रजत पदक 400 मी. 4×100 मी तथा 4×400 मी. में जीता | हिरोशिमा एशियाई खेलो में इन्होने एक रजत पदक 4×400 मी. जीता | पी.टी.उषा ने चार एशियाई खेलो में 1982 , 1986 , 1990 तथा 1994 में 11 पदक – 4 स्वर्ण और 7 रजत पदक प्राप्त किये है | उन्होंने एशियाई खेलो में सबसे अधिक स्वर्ण पदक जीतकर भारत का मान पुरी दुनिया में बढाया है |

P. T. Usha Biography in Hindi |

पी.टी.उषा (P. T. Usha) ने 17 पदक प्राप्त किये है जिनमे से 13 स्वर्ण , 3 रजत पदक , 200 मी  में एशियाई ट्रैक एंड फील्ड मीट , 1983 ई में कुवैत में प्राप्त किया | छठी एशियाई ट्रैक एंड फील्ड मीट 1985 ई. जकार्ता में उन्होंने 5 रजत पदक प्राप्त किये तथा 1 कांस्य पदक भी जीता | इसके बाद उन्हें एशिया की उडन प्री की उपाधि से सम्मानित किया गया | उनके द्वारा सन 1980 , 1984 , 1988 और 1996 में भारत का नेतृत्व किया गया |

सियो ओलम्पिक 1988 ,इ उनका प्रदर्शन बिलकुल भी अच्छा नही रहा | उनके पाँव में चोट थी और वे सही तरह से चोटिल पैर का इस्तेमाल नही कर पाती थी | बीमार होने की वजह से खेल में हिस्सा लेने की जगह से उनका काफी विरोध किया गया | सन 1995 में उनका चयन वर्ल्ड कप केनबरा के लिए एशियाई टीम के कप्तान के रूप में किया गया | वे भारतीय महिला एथीलीट 4×400 मी. रिले टीम की सदस्या रही जिसने रजत पदक 12वी एशियाइ खेलो में हिरोशिमा , जापान में 1994 ई , में प्राप्त किया |

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उन्होंने अपने अंतिम खेल के वर्षो में 200 मी. की स्पर्धा में कांस्य पदक 1995 ई .इ मद्रास में प्राप्त किया | 1996 ई.में फैडरेशन कप एथीलीटक्स चैंपियनशिप में उन्होंने 3 स्वर्ण पदक , 100 मी.  में तथा 4000 मी. में अपनी झोली में डाले | इससे उन्होंने यह सिद्ध किया कि 34 वर्ष की अवस्था में भी वे स्वस्थ एवं चुस्त-दुरुस्त अहि और उनमे अभी भी दमखम बचा हुआ है | भारत सरकार ने पी.टी.उषा को 1983 ई. में अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया | तत्पश्चात सन 1985 ई. में उन्हें पद्मश्री अवार्ड से नवाजा गया एवं सर्वश्रेष्ठ रेलवे स्पोर्ट्स पर्सन वर्ष 1985-86 ई. तथा 1986-87 ई. में चुना गया |

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