अमर शहीद सरदार भगत सिंह जी की जीवनी
अमर शहीद सरदार भगत सिंह जी की जीवनी
मंगलवार, 25 सितंबर 2018
0
अमर शहीद सरदार भगत सिंह जी की जीवनी
नाम: सरदार भगत सिंह
जन्म: 28 सितम्बर 1907
जन्मस्थान: बंगा, जरंवाला तहसील, पंजाब, ब्रिटिश भारत, (अब पकिस्तान में)
माता: विद्यावती कौर
पिता: सरदार किशन सिंह सिन्धु
भाई – बहन: रणवीर, राजिंदर, कुलतार, जगत, कुलबीर, प्रकाश कौर, शकुन्तला कौर, अमर कौर
म्रत्यु: 23 मार्च 1931, लाहौर
भगत सिंह जी का सुरुवाती जीवन
भगतसिंह का (जन्म 28 सितंबर, 1907 , मृतु 23 मार्च 1931 ) इनका जन्म पंजाब के जिला लायलपुर (जो अभी पाकिस्तान में है) के बंगा गांव के एक देशभक्त सिख परिवार में हुआ था हुवा था | वे भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। जिन्होंने मात्र 23 साल की उम्र में अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए और हँसते – हँसते अपने आप को देश के लिए बलिदान कर दिया। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था।
भगत सिंह जी की शिक्षा
भगत सिंह की परराम्भिक शिक्षा दयानन्द एंग्लो वैदिक हाई स्कूल से हुयी. भगत सिंह बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे. जलियाँ वाला बाग़ हत्या कांड से भगत सिंह को बड़ा सदमा पहुंचा. जलियाँ वाला बाग हत्या काण्ड के बाद बालक भगत सिंह अपने आपको वहां जाने से नहीं रोक पाए. और अपनी आखों से उस घटना की तस्वीरें देखने के बाद उनके मन में अंग्रेजों द्वारा किये गए आत्याचार के खिलाफ विद्राह ने जन्म ले लिया. आगे की पढ़ाई के लिए भगत सिंह ने लाहौर के नेशनल कॉलेज में दाखिला लिया.
भगत सिंह पर देश की आजादी का जूनून इस कदर सवार था कि उन्होंने महात्मा गाँधी द्वारा चलाये गए असहयोग आन्दोलन में बढ़ – चढ़ कर हिस्सा लिया. परन्तु अचानक से “चौरी – चौरा काण्ड” में क्रांतिकरियों द्वारा पुलिस चौकी में आग लगा देने की वजह से गांधी जी ने आन्दोलन वापस ले लिया. आन्दोलन वापस लेने की वजह से भगत सिंह बहुत दुखी हो गए.
लाहौर के नेशनल कॉलेज से B.A. की पढ़ाई के दौरान कॉलेज में भगत सिंह की सुखदेव से गहरी दोस्ती हो गयी. कॉलेज के दौरान भगत सिंह कॉलेज फंक्शनस में बढ़ – चढ़कर हिस्सा लेते थे. कॉलेज फंक्शनस में उनके द्वारा किये गए नाटक भारत की स्वतन्त्रता एवं ब्रिटिश शाशन द्वारा हो रहे जुल्मो पर आधारित होते थे. इस तरह के नाटकों के माध्यम से वो देश के नौजवानों को वतन की स्वतंत्रता के लिए प्रोत्साहित करते थे.
भगत सिंह जी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष
उस समय देश की बुरी हालत और अंग्रेजों के बढ़ते अत्याचार की वजह से भगत सिंह अपने आपको स्वतन्त्रता संग्राम में जाने से नहीं रोंक पाए. और वो अपनी पढाई छोड़कर स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े. उसी समय उनके माता – पिता उनकी शादी करना चाहते थे. परन्तु जैसे ही यह खबर भगत सिंह को मिली उन्होंने शादी करने से साफ़ इनकार करते हुए अपने परिवार वालों से कहा था, “यदि मैं आजादी से पहले विवाह करूँगा, तो मौत मेरी दुल्हन होगी.” इसके बाद उनके माता – पिता ने उनपर शादी करने के लिए दबाव डालना बंद कर दिया.
भगत सिंह और काकोरी कांड:
काकोरी कांड के आरोप मे गिरफ्तार हुए तमाम आरोपीयो मे से चार को मृत्यु दंड की सजा सुनाई गयी और, अन्य सोलह आरोपीयो को आजीवन कारावास की सजा दी गयी। इस खबर ने भगत सिंह को क्रांति के धधकते अंगारे मे बदल दिया। और उसके बाद भगत सिंह ने अपनी पार्टी “नौजवान भारत सभा” का विलय “हिंदुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन”कर के नयी पार्टी “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन”का आहवाहन किया।
लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला
लाला लाजपत राय जी के मृत्यु होने के बाद भगत सिंह और उनकी पार्टी ने बदला लेनें की ठान ली लेकिन गलती से उन लोगो ने ऑफीसर स्कॉट को मारने का प्लान बनाया, लेकिन गलती से उन्होंने असिस्टेंट पुलिस सौन्देर्स को मार डाला | इसके बाद ब्रिटिश सरकार उनको ढूढ़ने के लिए चारों तरह जाल बिछा दिया जिसके बाद उन्होंने अपने आप को बचाने के लिए भगत सिंह तुरंत लाहौर से भाग निकले, और अपनी दाढ़ी व बाल दोनों कटवा दी केवल अपने मिसन के लिए |
इस घटना के बाद ओ चंद्रशेखर आजाद , भगत सिंह , राजदेव व सुखदेव ये सब मिल चुके थे | ये लोग आपस में मिल कर एक बहुत बड़ा धमाका करने को सोचा | भगत सिंह हमेसा से कहते थे की “अंग्रेज बहरे हो गए है, उन्हें ऊँचा सुनाई देता है “ | वे कहते थे की “ बहारों को सुनाने के लिए धमाकों की जरुरत होती है “ | उन लोगो ने निर्णय लिया की एक बड़ा धमाका करना है और धमाका करने के बाद कमजोरो की तरह भागेंगें नहीं बल्कि अपने आप को पुलिस के हवले कर देंगे | इसके पीछे उनका एक बड़ा मिशन था की देशवासियों को एक बड़ा सन्देश पहुँचाना |
भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त का दिल्ली की केन्द्रीय एसम्ब्ली मे बम फेंकना:
ब्रिटिश सरकार के अहम मजदूर विरोधी नितियों वाले बिल पर विरोध जताने के लिए भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की केन्द्रीय एसम्ब्ली मे 8 अप्रैल 1929 को बम फेंके। बम फेंकने का मकसद किसी की जान लेना नहीं था। पर ब्रिटिश सरकार को अपनी बेखबरी भरी गहरी नींद से जगाना और बिल के खिलाफ विरोध जताना था। एसम्ब्ली मे फेंके गए बम बड़ी सावधानी से खाली जगह का चूनाव कर के फेंके गए थे। और उन बमो मे कोई जानलेवा विस्फोटक नहीं इस्त्माल किए गए थे। बम फेंकने के बाद भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने इन्कलाब ज़िंदाबाद के नारे लगाते हुए स्वैच्छित गिरफ्तारि दी।
भगत सिंह की क्रांतिकारी गतिविधियाँ:
भगत सिंह की निष्ठां को देखते हुए 1926 में उन्हें “नौजवान भारत सभा” का सेक्रेटरी नियुक्त किया गया. परन्तु भगत सिंह का लक्ष्य बड़ा था इसलिए उन्हें कुछ बड़ा करने की जरूरत थी. उधर काकोरी काण्ड के बाद “हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन” के 4 चार क्रांतिकारियों को फांसी की सजा एवं 16 को कड़ी सजाएँ देकर जेल में डाल देने के पश्चात पार्टी को भारी आघात पहुंचा था. तब पार्टी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने भगत सिंह के साथ मिलकर दोनों पार्टियों के विलय की योजना बनाई.
8 – 9 सितंबर 1 9 28 को दिल्ली स्थित फीरोज़ शाह कोटला मैदान में एक गुप्त बैठक कर भगत सिंह की भारत नौजवान सभा के सभी सदस्यों ने सभा का विलय “हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एस्सोसिएशन” में किया गया. और काफी विचार-विमर्श के बाद सभी की सहमति से पार्टी का नया नाम “हिन्दूस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA)” रखा गया.
भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फ़ाँसी:
भगत सिंह नहीं चाहते थे की उनकी सजा माफ़ हो क्यों की ओ कुछ एक प्लानिंग मिशन के साथ जेल में थे | उन्हें पता था की यदि मुझे फंसी हुए तो देश में क्रांति की लहर दौड़ पड़ेगी और देश की आजादी के लिए एक बल मिलेगी | लोग डरना छोड़ देंगे उन्हें ये सब पता था | इस लिए ओ हँसते – हँसते फंसी पर चढना चाहते थे |
ओ फाँसी जाने से पहले अक्सर ओ लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे | और उन्होंने किताब पढ़ने के लिए समय भी माँगा था |
शाम में करीब 7 बजकर 33 मिनट , 23 मार्च 1931 को पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई। लोग कहते है की जब जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनके फाँसी का वक्त आ गया है तब उन्होंने कहा था- “ठहरिये! पहले हम एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले।” फिर आप को जो करना है ओ कीजिये गा | फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले – “ठीक है अब चलो।”
भगत सिंह की परराम्भिक शिक्षा दयानन्द एंग्लो वैदिक हाई स्कूल से हुयी. भगत सिंह बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे. जलियाँ वाला बाग़ हत्या कांड से भगत सिंह को बड़ा सदमा पहुंचा. जलियाँ वाला बाग हत्या काण्ड के बाद बालक भगत सिंह अपने आपको वहां जाने से नहीं रोक पाए. और अपनी आखों से उस घटना की तस्वीरें देखने के बाद उनके मन में अंग्रेजों द्वारा किये गए आत्याचार के खिलाफ विद्राह ने जन्म ले लिया. आगे की पढ़ाई के लिए भगत सिंह ने लाहौर के नेशनल कॉलेज में दाखिला लिया.
भगत सिंह पर देश की आजादी का जूनून इस कदर सवार था कि उन्होंने महात्मा गाँधी द्वारा चलाये गए असहयोग आन्दोलन में बढ़ – चढ़ कर हिस्सा लिया. परन्तु अचानक से “चौरी – चौरा काण्ड” में क्रांतिकरियों द्वारा पुलिस चौकी में आग लगा देने की वजह से गांधी जी ने आन्दोलन वापस ले लिया. आन्दोलन वापस लेने की वजह से भगत सिंह बहुत दुखी हो गए.
लाहौर के नेशनल कॉलेज से B.A. की पढ़ाई के दौरान कॉलेज में भगत सिंह की सुखदेव से गहरी दोस्ती हो गयी. कॉलेज के दौरान भगत सिंह कॉलेज फंक्शनस में बढ़ – चढ़कर हिस्सा लेते थे. कॉलेज फंक्शनस में उनके द्वारा किये गए नाटक भारत की स्वतन्त्रता एवं ब्रिटिश शाशन द्वारा हो रहे जुल्मो पर आधारित होते थे. इस तरह के नाटकों के माध्यम से वो देश के नौजवानों को वतन की स्वतंत्रता के लिए प्रोत्साहित करते थे.
भगत सिंह जी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष
उस समय देश की बुरी हालत और अंग्रेजों के बढ़ते अत्याचार की वजह से भगत सिंह अपने आपको स्वतन्त्रता संग्राम में जाने से नहीं रोंक पाए. और वो अपनी पढाई छोड़कर स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े. उसी समय उनके माता – पिता उनकी शादी करना चाहते थे. परन्तु जैसे ही यह खबर भगत सिंह को मिली उन्होंने शादी करने से साफ़ इनकार करते हुए अपने परिवार वालों से कहा था, “यदि मैं आजादी से पहले विवाह करूँगा, तो मौत मेरी दुल्हन होगी.” इसके बाद उनके माता – पिता ने उनपर शादी करने के लिए दबाव डालना बंद कर दिया.
भगत सिंह और काकोरी कांड:
काकोरी कांड के आरोप मे गिरफ्तार हुए तमाम आरोपीयो मे से चार को मृत्यु दंड की सजा सुनाई गयी और, अन्य सोलह आरोपीयो को आजीवन कारावास की सजा दी गयी। इस खबर ने भगत सिंह को क्रांति के धधकते अंगारे मे बदल दिया। और उसके बाद भगत सिंह ने अपनी पार्टी “नौजवान भारत सभा” का विलय “हिंदुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन”कर के नयी पार्टी “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन”का आहवाहन किया।
लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला
लाला लाजपत राय जी के मृत्यु होने के बाद भगत सिंह और उनकी पार्टी ने बदला लेनें की ठान ली लेकिन गलती से उन लोगो ने ऑफीसर स्कॉट को मारने का प्लान बनाया, लेकिन गलती से उन्होंने असिस्टेंट पुलिस सौन्देर्स को मार डाला | इसके बाद ब्रिटिश सरकार उनको ढूढ़ने के लिए चारों तरह जाल बिछा दिया जिसके बाद उन्होंने अपने आप को बचाने के लिए भगत सिंह तुरंत लाहौर से भाग निकले, और अपनी दाढ़ी व बाल दोनों कटवा दी केवल अपने मिसन के लिए |
इस घटना के बाद ओ चंद्रशेखर आजाद , भगत सिंह , राजदेव व सुखदेव ये सब मिल चुके थे | ये लोग आपस में मिल कर एक बहुत बड़ा धमाका करने को सोचा | भगत सिंह हमेसा से कहते थे की “अंग्रेज बहरे हो गए है, उन्हें ऊँचा सुनाई देता है “ | वे कहते थे की “ बहारों को सुनाने के लिए धमाकों की जरुरत होती है “ | उन लोगो ने निर्णय लिया की एक बड़ा धमाका करना है और धमाका करने के बाद कमजोरो की तरह भागेंगें नहीं बल्कि अपने आप को पुलिस के हवले कर देंगे | इसके पीछे उनका एक बड़ा मिशन था की देशवासियों को एक बड़ा सन्देश पहुँचाना |
भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त का दिल्ली की केन्द्रीय एसम्ब्ली मे बम फेंकना:
ब्रिटिश सरकार के अहम मजदूर विरोधी नितियों वाले बिल पर विरोध जताने के लिए भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की केन्द्रीय एसम्ब्ली मे 8 अप्रैल 1929 को बम फेंके। बम फेंकने का मकसद किसी की जान लेना नहीं था। पर ब्रिटिश सरकार को अपनी बेखबरी भरी गहरी नींद से जगाना और बिल के खिलाफ विरोध जताना था। एसम्ब्ली मे फेंके गए बम बड़ी सावधानी से खाली जगह का चूनाव कर के फेंके गए थे। और उन बमो मे कोई जानलेवा विस्फोटक नहीं इस्त्माल किए गए थे। बम फेंकने के बाद भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने इन्कलाब ज़िंदाबाद के नारे लगाते हुए स्वैच्छित गिरफ्तारि दी।
भगत सिंह की क्रांतिकारी गतिविधियाँ:
भगत सिंह की निष्ठां को देखते हुए 1926 में उन्हें “नौजवान भारत सभा” का सेक्रेटरी नियुक्त किया गया. परन्तु भगत सिंह का लक्ष्य बड़ा था इसलिए उन्हें कुछ बड़ा करने की जरूरत थी. उधर काकोरी काण्ड के बाद “हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन” के 4 चार क्रांतिकारियों को फांसी की सजा एवं 16 को कड़ी सजाएँ देकर जेल में डाल देने के पश्चात पार्टी को भारी आघात पहुंचा था. तब पार्टी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने भगत सिंह के साथ मिलकर दोनों पार्टियों के विलय की योजना बनाई.
8 – 9 सितंबर 1 9 28 को दिल्ली स्थित फीरोज़ शाह कोटला मैदान में एक गुप्त बैठक कर भगत सिंह की भारत नौजवान सभा के सभी सदस्यों ने सभा का विलय “हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एस्सोसिएशन” में किया गया. और काफी विचार-विमर्श के बाद सभी की सहमति से पार्टी का नया नाम “हिन्दूस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA)” रखा गया.
भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फ़ाँसी:
भगत सिंह नहीं चाहते थे की उनकी सजा माफ़ हो क्यों की ओ कुछ एक प्लानिंग मिशन के साथ जेल में थे | उन्हें पता था की यदि मुझे फंसी हुए तो देश में क्रांति की लहर दौड़ पड़ेगी और देश की आजादी के लिए एक बल मिलेगी | लोग डरना छोड़ देंगे उन्हें ये सब पता था | इस लिए ओ हँसते – हँसते फंसी पर चढना चाहते थे |
ओ फाँसी जाने से पहले अक्सर ओ लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे | और उन्होंने किताब पढ़ने के लिए समय भी माँगा था |
शाम में करीब 7 बजकर 33 मिनट , 23 मार्च 1931 को पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई। लोग कहते है की जब जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनके फाँसी का वक्त आ गया है तब उन्होंने कहा था- “ठहरिये! पहले हम एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले।” फिर आप को जो करना है ओ कीजिये गा | फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले – “ठीक है अब चलो।”
फाँसी के पहले ३ मार्च को अपने भाई कुलतार को भेजे एक पत्र में भगत सिंह ने लिखा था
उन्हें यह फ़िक्र है हरदम, नयी तर्ज़-ए-ज़फ़ा क्या है?
हमें यह शौक है देखें, सितम की इन्तहा क्या है?
दहर से क्यों ख़फ़ा रहें, चर्ख का क्या ग़िला करें।
सारा जहाँ अदू सही, आओ! मुक़ाबला करें।।
शहीद भगत सिंह कविता
“इतिहास में गूँजता एक नाम हैं भगत सिंह
शेर की दहाड़ सा जोश था जिसमे वे थे भगत सिंह
छोटी सी उम्र में देश के लिए शहीद हुए जवान थे भगत सिंह
आज भी जो रोंगटे खड़े करदे ऐसे विचारो के धनि थे भगत सिंह ..”
Posted by- Vikash yadav
Previous article
Next article
Leave Comments
एक टिप्पणी भेजें