Dashrath Manjhi Biography in Hindi | दशरथ मांझी का संघर्षपूर्ण जीवन

Dashrath Manjhi Biography in Hindi | दशरथ मांझी का संघर्षपूर्ण जीवन
Dashrath Manjhi Biography in Hindi | दशरथ मांझी का संघर्षपूर्ण जीवन        दशरथ मांझी का संघर्षपूर्ण जीवन :  Dashrath Manjhi जिन्हें “माउंटेन मैन” के रूप में भी जाना जाता है। बिहार शहर के गहलौर के गांव में एक गरीब मजदूर थे। इनका जन्म 14 जनवरी 1929 में हुआ। उन्होनें अकेले ही 22 वर्षों (1960-1982) के कठिन परीश्रम के बाद, 360 फुट लंबी, 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को सिर्फ छैनी हथोड़ी से तोड़ कर एक सड़क बना डाली। इस सड़क ने गया ( बिहार ) के अत्रि और वज़ीरगंज सेक्टर्स की दूरी को 55 किमी से 15 किमी में बदल कर दिया। दशरथ मांझी एक दलित जाति से थे। बचपन में उन्हें अपना छोटे से छोटा हक मांगने के लिए संघर्ष करना पड़ता था। वे जिस गांव में रहते थे वहां से पास के कस्बे जाने के लिए एक पूरा पहाड़ (गहलोर पर्वत) पार करना पड़ता था। उनके गांव में उन दिनों न बिजली थी और न ही पानी।  Dashrath Manjhi छोटी उम्र में अपने घर से भाग निकले थे।  और धनबाद की कोयले की खानों में काम करने लगे। कुछ सालो बाद वे अपने घर लौट आए और फाल्गुनी देवी से शादी कर ली। दशरथ मांझी को गहलौर पहाड़ काटकर रास्ता बनाने का जूनून तब सवार हुआ। जब पहाड़ के दूसरे छोर पर लकड़ी काट रहे अपने पति के लिए खाना ले जाने के क्रम में उनकी पत्नी फगुनी पहाड़ के दर्रे में गिर गयी और उनका निधन हो गया।अगर फाल्गुनी देवी को तुरंत अस्पताल ले जाया गया होता तो शायद उनकी जान बच जाती। इसके बाद Dashrath Manjhi ने दृढ़ निश्चय किया कि वह अकेले अपने दम पर वे पहाड़ के बीचों बीच से रास्ता निकालेगे। और अकेले ही उन्होंने छैनी हथोड़ी की मदद से 360 फ़ुट-लम्बा (110 मी), 25 फ़ुट-गहरा (7.6 मी) 30 फ़ुट-चौड़ा (9.1 मी) गहलोर पहाड़ी को तोडना शुरू कर दिया।  मांझी अक्सर कहा करते थे :  “भगवान के भरोसे मत बैठे रहो, क्या पता भगवान आप ही के भरोसे बैठा हो। “    अकेले ही पहाड़ को तोड़ डाला :  दशरथ मांझी, अपने पहाड़ तोड़ने के काम को 22 वर्षों (1960-1982) में पूरा किया।  इस सड़क ने गया ( बिहार ) के अत्रि और वज़ीरगंज सेक्टर्स की दूरी को 55 किमी से 15 किमी कर दिया।  माँझी का मज़ाक उड़ाया गया। लेकिन उनके दृढ़ निश्चय ने गेहलौर के लोगों के जीवन बदल दिया।  दशरथ ने एक सुरक्षित पहाड़ को काटा, जो भारतीय वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम अनुसार दंडनीय है। फिर भी उनका ये प्रयास सराहनीय है।  मांझी जी ने कहा, ” पहले-पहले गाँव वालों ने मुझपर ताने कसे लेकिन उनमें से कुछ ने मुझे खाना दीया और औज़ार खरीदने में मेरी सहायता भी की।”  सम्मान :  मांझी ‘माउंटेन मैन’ के रूप में विख्यात हैं।  बिहार सरकार ने सामाजिक सेवा के क्षेत्र में 2006 में पद्म श्री हेतु उनके नाम का प्रस्ताव रखा।  बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दशरथ मांझी के नाम पर रखा गहलौर से 3 किमी पक्की सड़क का और गहलौर गांव में उनके नाम पर एक अस्पताल के निर्माण का प्रस्ताव रखा है।  निधन :  अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली में पित्त मूत्राशय कैंसर से ग्रस्त होने के बाद 17 अगस्त 2007 को मंझी की मृत्यु हो गई। उन्हें बिहार सरकार द्वारा राज्य अंतिम संस्कार दिया गया था। उनकी उपलब्धि के लिए, 26 दिसंबर 2016 को “बिहार की व्यक्तित्व” श्रृंखला में इंडिया पोस्ट द्वारा एक डाक टिकट जारी किया गया था।    दोस्तों यह पोस्ट आपको कैसी लगी कमेंट के माध्यम से जरूर बताएं like और share जरूर करें ..    धन्यवाद..     posted by vikash yadav



दशरथ मांझी का संघर्षपूर्ण जीवन :
Dashrath Manjhi जिन्हें “माउंटेन मैन” के रूप में भी जाना जाता है। बिहार शहर के गहलौर के गांव में एक गरीब मजदूर थे। इनका जन्म 14 जनवरी 1929 में हुआ। उन्होनें अकेले ही 22 वर्षों (1960-1982) के कठिन परीश्रम के बाद, 360 फुट लंबी, 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को सिर्फ छैनी हथोड़ी से तोड़ कर एक सड़क बना डाली। इस सड़क ने गया ( बिहार ) के अत्रि और वज़ीरगंज सेक्टर्स की दूरी को 55 किमी से 15 किमी में बदल कर दिया। दशरथ मांझी एक दलित जाति से थे। बचपन में उन्हें अपना छोटे से छोटा हक मांगने के लिए संघर्ष करना पड़ता था। वे जिस गांव में रहते थे वहां से पास के कस्बे जाने के लिए एक पूरा पहाड़ (गहलोर पर्वत) पार करना पड़ता था। उनके गांव में उन दिनों न बिजली थी और न ही पानी।
Dashrath Manjhi छोटी उम्र में अपने घर से भाग निकले थे।
और धनबाद की कोयले की खानों में काम करने लगे। कुछ सालो बाद वे अपने घर लौट आए और फाल्गुनी देवी से शादी कर ली। दशरथ मांझी को गहलौर पहाड़ काटकर रास्ता बनाने का जूनून तब सवार हुआ। जब पहाड़ के दूसरे छोर पर लकड़ी काट रहे अपने पति के लिए खाना ले जाने के क्रम में उनकी पत्नी फगुनी पहाड़ के दर्रे में गिर गयी और उनका निधन हो गया।अगर फाल्गुनी देवी को तुरंत अस्पताल ले जाया गया होता तो शायद उनकी जान बच जाती। इसके बाद Dashrath Manjhi ने दृढ़ निश्चय किया कि वह अकेले अपने दम पर वे पहाड़ के बीचों बीच से रास्ता निकालेगे। और अकेले ही उन्होंने छैनी हथोड़ी की मदद से 360 फ़ुट-लम्बा (110 मी), 25 फ़ुट-गहरा (7.6 मी) 30 फ़ुट-चौड़ा (9.1 मी) गहलोर पहाड़ी को तोडना शुरू कर दिया।
मांझी अक्सर कहा करते थे :
“भगवान के भरोसे मत बैठे रहो, क्या पता भगवान आप ही के भरोसे बैठा हो। “

अकेले ही पहाड़ को तोड़ डाला :
दशरथ मांझी, अपने पहाड़ तोड़ने के काम को 22 वर्षों (1960-1982) में पूरा किया।
इस सड़क ने गया ( बिहार ) के अत्रि और वज़ीरगंज सेक्टर्स की दूरी को 55 किमी से 15 किमी कर दिया।
माँझी का मज़ाक उड़ाया गया। लेकिन उनके दृढ़ निश्चय ने गेहलौर के लोगों के जीवन बदल दिया।
दशरथ ने एक सुरक्षित पहाड़ को काटा, जो भारतीय वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम अनुसार दंडनीय है। फिर भी उनका ये प्रयास सराहनीय है।
मांझी जी ने कहा, ” पहले-पहले गाँव वालों ने मुझपर ताने कसे लेकिन उनमें से कुछ ने मुझे खाना दीया और औज़ार खरीदने में मेरी सहायता भी की।”
सम्मान :
मांझी ‘माउंटेन मैन’ के रूप में विख्यात हैं।
बिहार सरकार ने सामाजिक सेवा के क्षेत्र में 2006 में पद्म श्री हेतु उनके नाम का प्रस्ताव रखा।
बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दशरथ मांझी के नाम पर रखा गहलौर से 3 किमी पक्की सड़क का और गहलौर गांव में उनके नाम पर एक अस्पताल के निर्माण का प्रस्ताव रखा है।
निधन :
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली में पित्त मूत्राशय कैंसर से ग्रस्त होने के बाद 17 अगस्त 2007 को मंझी की मृत्यु हो गई। उन्हें बिहार सरकार द्वारा राज्य अंतिम संस्कार दिया गया था। उनकी उपलब्धि के लिए, 26 दिसंबर 2016 को “बिहार की व्यक्तित्व” श्रृंखला में इंडिया पोस्ट द्वारा एक डाक टिकट जारी किया गया था।

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