M. Visvesvaraya Biography

M. Visvesvaraya Biography: 

जन्म: 15 सितंबर 1860, चिक्काबल्लापुर, कोलार, कर्नाटक
भारतरत्न सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या (एम. विश्वेश्वरैया) एक प्रख्यात इंजीनियर और राजनेता थे। उन्होंने आधुनिक भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत के निर्माण में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें वर्ष 1955 में देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से अलंकृत किया गया था। भारत में उनका जन्मदिन अभियन्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है। जनता की सेवा के लिए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘नाइट कमांडर ऑफ़ द ब्रिटिश इंडियन एम्पायर’ (KCIE) से सम्मानित किया। वो हैदराबाद शहर के बाढ़ सुरक्षा प्रणाली के मुख्य डिज़ाइनर थे और मुख्य अभियंता के तौर पर मैसोर के कृष्ण सागर बाँध के निर्माण में मुख्या भूमिका निभाई थी।

प्रारंभिक जीवन

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म कोलार जिले के चिक्काबल्लापुर में 15 सितंबर1860 को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीनिवास शास्त्री तथा माता का नाम वेंकाचम्मा था। उनके पूर्वज आंध्र प्रदेश के मोक्षगुंडम से यहाँ आकर बस गए थे। उनके पिता श्रीनिवास शास्त्री संस्कृत के विद्वान और आयुर्वेदिक चिकित्सक थे। जब बालक विश्वेश्वरैया मात्र 12 साल के थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो गयी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा उनके जन्मस्थान पर स्थित एक प्राइमरी स्कूल में हुई। तत्पश्चात उन्होंने बैंगलोर के सेंट्रल कॉलेज में दाखिला लिया। धन के अभाव के चलते उन्हें यहाँ ट्यूशन करना पड़ता था। इन सब के बीच उन्होंने वर्ष 1881 में बीए की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया और उसके बाद मैसूर सरकार की मदद से इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पूना के साइंस कॉलेज में दाखिला लिया। सन 1883 की एलसीई व एफसीई परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करके उन्होंने अपनी योग्यता का परिचय दिया और इसको देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने इन्हें नासिक में सहायक इंजीनियर के पद पर नियुक्त किया।
कैरियर
इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद उन्हें मुंबई के PWD विभाग में नौकरी मिल गयी। उन्होंने डेक्कन में एक जटिल सिंचाई व्यवस्था को कार्यान्वित किया। संसाधनों और उच्च तकनीक के अभाव में भी उन्होंने कई परियोजनाओं को सफल बनाया। इनमें प्रमुख थे कृष्णराजसागर बांध, भद्रावती आयरन एंड स्टील व‌र्क्स, मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फैक्टरी, मैसूर विश्वविद्यालय और बैंक ऑफ मैसूर। ये उपलब्धियां एमवी के कठिन प्रयास से ही संभव हो पाई।
मात्र 32 साल के उम्र में सुक्कुर (सिंध) महापालिका के लिए कार्य करते हुए उन्होंने सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे को जल आपूर्ति की जो योजना उन्होंने तैयार किया वो सभी इंजीनियरों को पसंद आया।
अँगरेज़ सरकार ने सिंचाई व्यवस्था को दुरुस्त करने के उपायों को ढूंढने के लिए एक समिति बनाई। उनको इस समिति का सदस्य बनाया गया। इसके लिए उन्होंने एक नए ब्लॉक प्रणाली का आविष्कार किया। इसके अंतर्गत उन्होंने स्टील के दरवाजे बनाए जो कि बांध से पानी के बहाव को रोकने में मदद करता था। उनके इस प्रणाली की बहुत तारीफ़ हुई और आज भी यह प्रणाली पूरे विश्व में प्रयोग में लाई जा रही है।
उन्होंने मूसा व इसा नामक दो नदियों के पानी को बांधने के लिए भी योजना बनायीं थी। इसके बाद उन्हें वर्ष 1909 में मैसूर राज्य का मुख्य अभियन्ता नियुक्त किया गया।
वो मैसूर राज्य में आधारभूत समस्याओं जैसे अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी आदि को लेकर भी चिंतित थे। इन समस्याओं से निपटने के लिए उन्होंने ने ‘इकॉनोमिक कॉन्फ्रेंस’ के गठन का सुझाव दिया। इसके बाद उन्होंने मैसूर के कृष्ण राजसागर बांध का निर्माण कराया। चूँकि इस समय देश में सीमेंट नहीं बनता था इसलिए इंजीनियरों ने मोर्टार तैयार किया जो सीमेंट से ज्यादा मजबूत था।

मैसूर के दीवान

मैसूर राज्य में उनके योगदान को देखते हुए मैसूर के महाराजा ने उन्हें सन 1912 में राज्य का दीवान यानी मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया। मैसूर के दीवान के रूप में उन्होंने राज्य के शैक्षिक और औद्योगिक विकास के लिए अथक प्रयास किया। उनके प्रयत्न से राज्य में कई नए उद्योग लगे। उनमें से प्रमुख थे चन्दन तेल फैक्टरी, साबुन फैक्टरी, धातु फैक्टरी, क्रोम टेनिंग फैक्टरी। उनके द्वारा प्रारंभ किये गए कई कारखानों में से सबसे महत्वपूर्ण भद्रावती आयरन एंड स्टील वर्क्स है। सर एम विश्वेश्वरैया स्वेच्छा से 1918 में मैसूर के दीवान के रूप में सेवानिवृत्त हो गए।
सेवानिवृत्ति के बाद भी वो सक्रिय रूप से कार्य कर रहे थे। राष्ट्र के लिए उनके अमूल्य योगदान को देखते हुए सन 1955 में भारत सरकार ने उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया। जब सर एम विश्वेश्वरैया 100 साल हुए तब भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया।
101 की उम्र में 14 अप्रैल 1962 को विश्वेश्वरैया का निधन हो गया।
सम्मान और पुरस्कार
1904: लगातार 50 साल तक लन्दन इंस्टिट्यूट ऑफ़ सिविल इंजीनियर्स की मानद सदस्यता
1906: उनकी सेवाओं की मान्यता में “केसर-ए-हिंद ‘ की उपाधि
1911: कम्पैनियन ऑफ़ द इंडियन एम्पायर (CIE)
1915: नाइट कमांडर ऑफ़ द आर्डर ऑफ़ थे इंडियन एम्पायर (KCIE )
1921: कलकत्ता विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टर ऑफ़ साइंस से सम्मानित
1931: बॉम्बे विश्वविद्यालय द्वारा LLD
1937: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा D. Litt से सम्मानित
1943: इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (भारत) के आजीवन मानद सदस्य निर्वाचित
1944:  इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा D.Sc.
1948: मैसूर विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट – LLD से नवाज़ा

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धन्यवाद.
By Vikash yadav
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