hindi singer
कुमार सानू हिंदी सिनेमा के एक जानेमाने पार्श्व गायक हैं। 20 अक्टूबर, 1957 को कोलकता में जन्मे कुमार सानू का मूल नाम केदारनाथ भट्टाचार्य है। उनके पिताजी स्वयं एक अच्छे गायक और संगीतकार थे। उन्होंने ही कुमार सानू को गायकी और तबला वादन सिखाया था। गायक किशोर कुमार को अपना आदर्श मानने वाले सानू ने गायकी में अपना खुद का अलग अंदाज़ बनाये रखा है।कुमार सानू के घर पर शुरू से ही संगीत की परंपरा थी। पिताजी शास्त्रीय संगीत के टीचर थे। मां भी गाती थीं। बड़ी बहन भी रेडियो में गाती है और आज भी वह पिताजी का संगीत स्कूल चला रही हैं। इस तरह परिवार के माहौल ने सानू को एक अच्छा गायक बना दिया। करीब करीब 350 से अधिक फिल्मों के लिए गा चुके कुमार सानू को सफलता वर्ष 1990 में बनी ‘आशिकी’ फिल्म से मिली जिसके गीत सुपरहिट हुए और कुमार सानू लोकप्रियता के शिखर पर पहुंच गए थे। बहरहाल, आशिकी कुमार सानू की पहली फिल्म नहीं थी। उनको पहला ब्रेक जगजीत सिंह ने दिया था। उन्होंने उन्हें कल्याणजी आनंद जी से मिलवाया जिन्होंने 1989 में आई फिल्म ‘जादूगर’ के लिए कुमार सानू से गीत गवाया।लगातार पांच बार फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक पुरस्कार जीत चुके कुमार सानू की आवाज़ काफी हद तक किशोर कुमार से मिलती जुलती है। हालांकि उन्होंने मुकेश और मोहम्मद रफी की शैली अपनाने की भी कोशिश की लेकिन बाद में अपनी अलग शैली विकसित की।
कुमार सानू का निजी जीवन कई समस्याओं से गुजरा. उन का विवाह, डिवोर्स और अब उन की दूसरी पत्नी हैं जो 16 साल से उन के साथ हैं. उन की 2 बेटियां हैं जो विदेश में हैं और संगीत पर काम कर रही हैं और उन का एक बेटा जान है जो बहुत अच्छा गाता है. उन्हें अपने पुराने दिनों को याद करना आज भी अच्छा लगता है. वे कोलकाता से बहुत प्यार करते हैं, इसलिए जब भी मौका मिलता है वहां जाते हैं और वहां के स्ट्रीट फूड का मजा लेते हैं क्योंकि उन्हें खाने का बहुत शौक है. कुमार सानू ने गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए कोलकाता और दिल्ली में ‘कुमार सानू विद्यानिकेतन’ की स्थापना की है. वे कहते हैं कि शिक्षा से ही व्यक्ति के विचार बदल सकते हैं और लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठ सकते हैं. वे मुंबई में भी इस स्कूल की नींव रखेंगे. इस विद्यालय में बच्चों को यूनिफौर्म व किताबें दी जाएंगी, तो उन के मातापिता को हर महीने पैसे भी दिए जाएंगे ताकि वे अपने बच्चों को शिक्षा के लिए स्कूल भेजे, पैसे के लिए काम पर न लगाएं. कुमार सानू राजनीति में भी आए, जिस के बारे में उन का कहना है कि राजनीति में मेरा जाने का मकसद पैसा बनाना नहीं था, क्योंकि मैं ने काफी कमाया है. जब 1987 में किशोर कुमार की मृत्यु हुई, तो उस ‘वैक्यूम’ को भरने के लिए टी सीरीज के ओनर गुलशन कुमार ने मुझ से काफी गाने किशोर कुमार के गवाए. उस वक्त उस के कैसेट सस्ते होने की वजह से खूब बिके. फिर ‘आशिकी’ मेरे जीवन की ‘टर्निंग पौइंट’ थी जिस के बाद मैं ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा.
कुमार सानू हिंदी सिनेमा के एक जानेमाने पार्श्व गायक हैं। कोलकता में जन्मे कुमार सानू का मूल नाम केदारनाथ भट्टाचार्य है। उनके पिताजी स्वयं एक अच्छे गायक और संगीतकार थे। उन्होंने ही कुमार सानू को गायकी और तबला वादन सिखाया था। गायक किशोर कुमार को अपना आदर्श मानने वाले सानू ने गायकी में अपना खुद का अलग अंदाज़ बनाये रखा है।कुमार सानू के घर पर शुरू से ही संगीत की परंपरा थी। पिताजी शास्त्रीय संगीत के टीचर थे। मां भी गाती थीं। बड़ी बहन भी रेडियो में गाती है और आज भी वह पिताजी का संगीत स्कूल चला रही हैं। इस तरह परिवार के माहौल ने सानू को एक अच्छा गायक बना दिया। करीब करीब 350 से अधिक फिल्मों के लिए गा चुके कुमार सानू को सफलता वर्ष 1990 में बनी 'आशिकी' फिल्म से मिली जिसके गीत सुपरहिट हुए और कुमार सानू लोकप्रियता के शिखर पर पहुंच गए थे। बहरहाल, आशिकी कुमार सानू की पहली फिल्म नहीं थी। उनको पहला ब्रेक जगजीत सिंह ने दिया था। उन्होंने उन्हें कल्याणजी आनंद जी से मिलवाया जिन्होंने 1989 में आई फिल्म 'जादूगर' के लिए कुमार सानू से गीत गवाया।
लगातार पांच बार फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक पुरस्कार जीत चुके कुमार सानू की आवाज़ काफी हद तक किशोर कुमार से मिलती जुलती है। हालांकि उन्होंने मुकेश और मोहम्मद रफी की शैली अपनाने की भी कोशिश की लेकिन बाद में अपनी अलग शैली विकसित की।एक दिन में 28 गाने रिकॉर्ड करवाने वाले वह एकमात्र गायक हैं। उन्होंने चौदह हज़ार गाने गाये हैं। कुमार सानू का आज के दौर के संगीत के बारे में कहना है कि 'आज के संगीत से मेलोडी, सुर, ताल आदि कहीं गुम होता जा रहा है और उसकी जगह शोर ले रहा है।
सानु अपने शुरुआती दिनों में संगीत उपकरणों को बजाते थे।उन्होंने संगीत उद्योग में 7 वर्ष तक संघर्ष किया, और अंत में 1987 में, जगजीत सिंह ने उन्हें हिंदी फिल्म ‘आँधियाँ’ में एक गीत गाने का अवसर दिया। उनके नाम एक दिन में 28 गीत गाने का रिकॉर्ड है, और यह रिकॉर्ड गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज है।उनके परिवार के कुछ सदस्यों ने शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षण लिया था, लेकिन सानु ने ऐसा कोई प्रशिक्षण नहीं लिया।उन्होंने ए. आर. रहमान के साथ कभी कार्य नहीं किया, क्योंकि वह उनके (ए. आर. रहमान) रात में संगीत रिकॉर्डिंग करने के तरीके को नापसंद करते हैंउनके पिता स्थानीय नाटकों में संगीतकार के रूप में कार्य किया करते थे।बचपन में, लोग उन्हें छानु कहते थे, जिसके बाद उन्होंने अपने नाम (सानु) में इस्तेमाल किया।वह भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सदस्य हैं।
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कुमार सानू जी की जीवनी हिंदी में | Biography of Kumar Sanu in hindi (jeewangatha)
शुक्रवार, 26 जुलाई 2019
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कुमार सानू जी की जीवनी हिंदी में | Biography of Kumar Sanu in hindi
कुमार सानू हिंदी सिनेमा के एक जानेमाने पार्श्व गायक हैं। 20 अक्टूबर, 1957 को कोलकता में जन्मे कुमार सानू का मूल नाम केदारनाथ भट्टाचार्य है। उनके पिताजी स्वयं एक अच्छे गायक और संगीतकार थे। उन्होंने ही कुमार सानू को गायकी और तबला वादन सिखाया था। गायक किशोर कुमार को अपना आदर्श मानने वाले सानू ने गायकी में अपना खुद का अलग अंदाज़ बनाये रखा है।कुमार सानू के घर पर शुरू से ही संगीत की परंपरा थी। पिताजी शास्त्रीय संगीत के टीचर थे। मां भी गाती थीं। बड़ी बहन भी रेडियो में गाती है और आज भी वह पिताजी का संगीत स्कूल चला रही हैं। इस तरह परिवार के माहौल ने सानू को एक अच्छा गायक बना दिया। करीब करीब 350 से अधिक फिल्मों के लिए गा चुके कुमार सानू को सफलता वर्ष 1990 में बनी ‘आशिकी’ फिल्म से मिली जिसके गीत सुपरहिट हुए और कुमार सानू लोकप्रियता के शिखर पर पहुंच गए थे। बहरहाल, आशिकी कुमार सानू की पहली फिल्म नहीं थी। उनको पहला ब्रेक जगजीत सिंह ने दिया था। उन्होंने उन्हें कल्याणजी आनंद जी से मिलवाया जिन्होंने 1989 में आई फिल्म ‘जादूगर’ के लिए कुमार सानू से गीत गवाया।लगातार पांच बार फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक पुरस्कार जीत चुके कुमार सानू की आवाज़ काफी हद तक किशोर कुमार से मिलती जुलती है। हालांकि उन्होंने मुकेश और मोहम्मद रफी की शैली अपनाने की भी कोशिश की लेकिन बाद में अपनी अलग शैली विकसित की।
संघर्ष:
कुमार सानू का निजी जीवन कई समस्याओं से गुजरा. उन का विवाह, डिवोर्स और अब उन की दूसरी पत्नी हैं जो 16 साल से उन के साथ हैं. उन की 2 बेटियां हैं जो विदेश में हैं और संगीत पर काम कर रही हैं और उन का एक बेटा जान है जो बहुत अच्छा गाता है. उन्हें अपने पुराने दिनों को याद करना आज भी अच्छा लगता है. वे कोलकाता से बहुत प्यार करते हैं, इसलिए जब भी मौका मिलता है वहां जाते हैं और वहां के स्ट्रीट फूड का मजा लेते हैं क्योंकि उन्हें खाने का बहुत शौक है. कुमार सानू ने गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए कोलकाता और दिल्ली में ‘कुमार सानू विद्यानिकेतन’ की स्थापना की है. वे कहते हैं कि शिक्षा से ही व्यक्ति के विचार बदल सकते हैं और लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठ सकते हैं. वे मुंबई में भी इस स्कूल की नींव रखेंगे. इस विद्यालय में बच्चों को यूनिफौर्म व किताबें दी जाएंगी, तो उन के मातापिता को हर महीने पैसे भी दिए जाएंगे ताकि वे अपने बच्चों को शिक्षा के लिए स्कूल भेजे, पैसे के लिए काम पर न लगाएं. कुमार सानू राजनीति में भी आए, जिस के बारे में उन का कहना है कि राजनीति में मेरा जाने का मकसद पैसा बनाना नहीं था, क्योंकि मैं ने काफी कमाया है. जब 1987 में किशोर कुमार की मृत्यु हुई, तो उस ‘वैक्यूम’ को भरने के लिए टी सीरीज के ओनर गुलशन कुमार ने मुझ से काफी गाने किशोर कुमार के गवाए. उस वक्त उस के कैसेट सस्ते होने की वजह से खूब बिके. फिर ‘आशिकी’ मेरे जीवन की ‘टर्निंग पौइंट’ थी जिस के बाद मैं ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा.
उपलब्धि:
पुरस्कार:
रोचक जानकारियाँ:
सानु अपने शुरुआती दिनों में संगीत उपकरणों को बजाते थे।उन्होंने संगीत उद्योग में 7 वर्ष तक संघर्ष किया, और अंत में 1987 में, जगजीत सिंह ने उन्हें हिंदी फिल्म ‘आँधियाँ’ में एक गीत गाने का अवसर दिया। उनके नाम एक दिन में 28 गीत गाने का रिकॉर्ड है, और यह रिकॉर्ड गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज है।उनके परिवार के कुछ सदस्यों ने शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षण लिया था, लेकिन सानु ने ऐसा कोई प्रशिक्षण नहीं लिया।उन्होंने ए. आर. रहमान के साथ कभी कार्य नहीं किया, क्योंकि वह उनके (ए. आर. रहमान) रात में संगीत रिकॉर्डिंग करने के तरीके को नापसंद करते हैंउनके पिता स्थानीय नाटकों में संगीतकार के रूप में कार्य किया करते थे।बचपन में, लोग उन्हें छानु कहते थे, जिसके बाद उन्होंने अपने नाम (सानु) में इस्तेमाल किया।वह भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सदस्य हैं।
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