hindi singer
लता का नाम पहले हेमा रखा गया था लेकिन बाद में उनके पिता ने अपने एक प्ले “भाव बंधन” के चरित्र से प्रभावित होकर इनका नाम लता कर दिया था. बचपन में ये सभी भाई-बहन अपने पिता से क्लासिकल संगीत सीखते थे.लता ने अपने पिता के म्यूजिकल प्ले में कम करना बचपन से ही शुरू कर दिया था. वें क्लासिकल म्यूजिक की ट्रेनिंग अमानत खान, पंडित तुलसीदास शर्मा और अमन अली खान से लेती थी. उस समय वो के.एल सहगल के म्यूजिक से काफी प्रभावित थी.ये जानना बहुत ही आश्चर्यजनक हैं लेकिन सत्य भी हैं कि उन्होंने कोई भी औपचारिक शिक्षा हासिल नहीं की है. उनके स्कूल नही जाने के पीछे ये कहानी भी प्रचलित हैं की वो स्कूल में अपने साथ के बच्चों को गाना सिखाने लग गयी थी,और टीचर ने जब उन्हें ऐसा करने से रोका तो वो नाराज हो गयी और फिर कभी स्कूल नहीं गयी. इसके अलावा एक कारण यह भी कि वो अपनी छोटी बहिन आशा को अपने साथ स्कूल नहीं ले जा सकती थी इसलिए वो भी स्कूल नहीं गयी.लता जब 13 वर्ष की थी तब उनके पिता का देहांत हो गया था,इस कारण घर की आर्थिक जिम्मेदारी उन पर ही आ गयी थी.
उन्होंने 1942 में गाना स्टार्ट किया था,और इसके बाद 70 सालों से वो गायन के क्षेत्र में सक्रिय रही . इन्होने एक हजार से अधिक फिल्मों और 36 से अधिक भाषाओं के गानों में अपनी आवाज दी है.
लता जी ने सर्वप्रथम 1938 में शोलापुर के नूतन थिएटर में परफोर्म किया था,जहां उन्होंने रंग खंबवटी और 2 अन्य मराठी गाने गाये थे.लताजी ने बॉलीवुड में एंट्री तब की थी जब नूरजहाँ और शमशाद बेगम जैसी भारी आवाजों वाली गायिकाएं मौजूद थी,ऐसे में उनके लिए अपनी जगह बनाना मुश्किल काम थालताजी ने 1940 से लेकर 1980 तक फिल्मों में जो गाने दिए वो उनके प्लेबैक सिंगिंग के करियर में रखे जा सकते हैं,लेकिन ये मापदंड बहुत ही कम होगा उनके करियर को समझने के लिए, क्युकी वो सदी की महागायिका हैं इसलिए वर्षों,गानों या अवार्ड में करियर को समझना उनकी प्रतिभा के साथ न्याय करना नहीं होगा.उन्होंने वैजयंती माला से लेकर प्रीटी जिंटा तक की जनरेशन की अभिनेत्रियों के लिए आवाज दी हैं,जिससे साफ समझा जा सकता हैं कि उन्होंने बॉलीवुड की हर जनेरेशन की लगभग हर बड़ी अभिनेत्री के लिए गाना गाया हैं.वास्तव में ना केवल उनकी आवाज़ ने बल्कि उन्होंने भी 3 पीढ़ी के म्यूजिक कम्पोजर और मेल सिंगर्स के साथ भी सामंजस्य बिठाया था उनकी गायकी ने कभी कोई सरहद नहीं देखी,भारत में और बाहर हर जगह उनकी आवाज़ को पसंद किया जाता रहा हैं,और उन्हें उतना ही सम्मान भी मिलता रहा हैं.अपने करियर की शुरुआत में उन्होंने एक्टिंग भी की थी और म्यूजिक डाइरेक्टर के तौर पर भी काम किया था लेकिन वो इतना सफल नहीं रहा.
संगीत की इस महनायिका ने ऑफिशियल रूप से गाने की शुरुआत अपने पिता के देहांत के तुरंत बाद 1942 में की थी. उनके पारिवारिक मित्र विनायक दामोदर कर्नाटकी ने उन्हें जॉब खोजने में मदद की और उन्हें मराठी और हिंदी फिल्मों में काम दिलाया.
लताजी के करियर की शुरुआत भी मुश्किल ही रही थी,उन्हें आसानी से काम नहीं मिला था. उनका बतौर प्लेबैक सिंगर पहला गाना “नाचू या गाणे,खेलु सारी मानी हौस भारी” का रिकॉर्ड हुआ था,यह गाना मराठी फिल्म “किती हसाल” के लिए बनाया गया था और इसके कंपोजर सदाशिवराव नेवरेकर थे. लेकिन दुर्भाग्यवश फिल्म रिलीज से पहले इस गाने को हटा दिया गया. इसके बाद उनका पहला हिंदी गाना 1943 में रिकॉर्ड हुआ.
1945 में लता मुंबई शिफ्ट हो गई थी, यहाँ भी उन्हें बहुत से म्यूजिक कंपोजर ने ये कहकर रिजेक्ट किया कि उनकी आवाज़ बहूत पतली और तीखी हैं,जो कि उस समय पसंद किये जा रहे गानों से बिलकुल विपरीत थी. उन्हें कई बार सुप्रसिद्ध गायिका नूरजहाँ के लिए गाने के लिए भी कहा जाता था.
विनायक के अलावा गुलाम हैदर ने भी लता की करियर में काफी मदद की. इन्हे “दिल मेरा तोडा,मुझे कही का ना छोड़ा” गाने से पहचान मिली थी, ये गाना 1948 में मजदूर फिल्म में आया था. उनका पहला हिट गाना “आएगा आनेवाला”.
इसके बाद उन्होंने इंडस्ट्री के सभी बड़े म्यूजिक डाइरेक्टर और प्लेबैक सिंगर के साथ काम मिलना शुरू हो गया. उन्होंने सचिन देव बर्मन,सलिल चौधरी,संकर जयकिशन,मदन मोहन,कल्यानजी-आनंदजी,खय्याम और पंडित अमरनाथ हुसनलाल भगत राम के साथ काम किया था. इन्हे 1958 में अपने जीवन का सबसे पहला फिल्मफेयर अवार्ड मधुमती फिल्म के “आजा रे परदेसी” गाने के लिए मिला जिसके म्यूजिक डायरेक्टर सलिल चौधरी थे.
उन्होंने राग आधारित गाने भी गाये थे जैसे 1952 में बैजू बावरा के लिए राग भैरव पर “मोहे भूल गए सावरिया” साथ ही कुछ पश्चिमी थीम के गाने जैसे “अजीब दास्ता हैं और कुछ भजन जैसे हम दोनों मूवी में “अल्लाह तेरो नाम” भी गाये थे.
उन दिनों ही उन्होंने मराठी और तमिल से क्षेत्रीय भाषों में करियर शुरू किया था. उनका तमिल में पहला गाना 1956 में “वानराधम” के लिए “ एंथन कन्नालन” गाया था.
मराठी फिल्म के लिए उन्होंने अपने भाई हृदयनाथ मंगेश्कर के लिए गाना गया था जो कि जैत रे जैत जैसी फिल्म के म्यूजिक डायरेक्टर थे. लता जी ने बंगाली फिल्म के म्यूजिक डायरेक्टर जैसे सलिल चौधरी और हेमंत कुमार के लिए भी गाना गाया. उन्होंने 1967 में “क्रान्तिवीरा सांगोली” फिल्म में लक्ष्मण वेर्लेकर के कम्पोज किये “बेल्लाने बेलागयिथू” से कन्नड़ में डेब्यू किया था.
मलयालम में उन्होंने अपनी एकमात्र नेल्लू फिल्म के लिए “कदली चेंकाडाली” गाना गाया था जिसे सलिल चौधरी ने कम्पोज किया था और वायलर रामवर्मा ने लिखा था.
उन्होंने मोहम्मद रफ़ी, मुकेश, हेमंत कुमार, महेंद्र कपूर और मन्ना डे के साथ कई प्रोजेक्ट्स किये थे. अब वो सिंगिंग स्टार बन गयी थी,हर प्रोडूसर,म्यूजिक डायरेक्टर और एक्टर उनके साथ काम करना चाहता था.
1970 और 1980 के दशक में उनके किशोर कुमार के साथ गाये ड्यूएट बहुत प्रसिद्ध हुए,जिन्हें आज तक काफी पसंद किया जाता हैं. कुछ गाने जैसे आराधना “कोरा कागज़” (1969),”आंधी” फिल्म का तेरे बिना जिंदगी से (1971) अभिमान का “तेरे मेरे मिलन की” (1973), घर का आप की आँखों में कुछ” (1978) कुछ ऐसे गाने हैं जिन्हें सदियों तक नहीं भुलाया जा सकता.
1980 में लताजी ने सचिन बर्मन के बेटे राहुल देव बर्मन के साथ और आर.डी. बर्मन के साथ काम किया था. आर.डी. बर्मन उनके बहन आशा भोंसले के पति है. उन्होने लाताजी के साथ रॉकी का “क्या यही प्यार हैं”,अगर तुम ना होते का “हमें और जीने की, मासूम में “तुझसे नाराज नहीं जिंदगी” आदि गाने गाये.
कुछ वर्ष पहले धीरे-धीरे गिरते स्वास्थ्य के चलते लता जी ने काम करना कम कर दिया,और कुछ चुनिंदा गानों में ही अपनी आवाज दी. उन्होंने अपने म्यूजिकल करियर में बहुत से म्यूजिक एल्बम भी लांच किये थे.
लता मंगेशकर ने कुछ मराठी फिल्मों में बतौर म्यूजिक डायरेक्टर काम भी किया था, जिनमे सबसे पहले 1955 में “राम राम पाव्हाने” थी. उनके दुसरे अन्य प्रोजेक्ट्स मराठा टीटूका मेलवा (1963), मोहित्या मंजुला (1963).सधी मनसे (1965) और तम्बदी माटी (1969) थे, उन्होंने महाराष्ट्र स्टेट का बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर अवार्ड भी जीता था ये अवार्ड उन्हें साधी मनसे फिल्म के ऐर्नाच्या देवा के लिए मिला था.
लता मंगेशकर ने प्रोड्यूसर के तौर पर भी कुछ फिल्म्स की थी जैसे “वादल”,ये मराठी फिल्म 1953 में आई थी, इसके अलावा सी रामचंद्रन के साथ को-प्रोड्यूसर के तौर पर झांझर,1955 में कंचन के लिए और 1990 में “लेकिन….”. उन्होंने 2012 में अपना म्यूजिकल लेबल एलटी म्यूजिक भी लांच किया,और अपनी छोटी बहिन के साथ भक्ति म्यूजिक लांच किया.
लताजी को उनके करियर में बहुत से सम्मान और अवार्ड मिले हैं. जिनमें राष्ट्र के सर्वोच्च पुरस्कारों में शामिल पद्म भूषण से लेकर भारत रत्न तक भी शामिल हैं. पद्म भूषण पुरस्कार उन्हें 1969 में मिला था इसके बाद 1989 में दादासाहेब फाल्के पुरूस्कार मिला. इसके अलावा 1997 में उन्हें महाराष्ट्र भूषण अवार्ड और 1999 में पद्म-विभुषण अवार्ड मिला था.
लता जी को अपने जीवन का पहला नेशनल अवार्ड परिचय फिल्म के लिए मिला था. उन्होंने 3 नेशनल फिल्म अवार्ड क्रमश: 1972,1974 और 1990 में जीते थे. इसके अलावा 2008 में उन्हें भारत के 60वे स्वतंत्रता दिवस पर “वन टाइम अवार्ड फॉर लाइफटाइम अचीवमेंट” अवार्ड भी मिला था.
लता जी ने जितनी सफलता की ऊँचाइयाँ देखी हैं उतने ही विवादों का सामना भी किया हैं. एस.डी बर्मन के साथ उनके रिलेशनशिप की चर्चाएँ होती रहती थी,और कुछ विवादित कारणों के चलते ही इस जोड़ी ने 1958 से लेकर 1962 तक साथ काम नहीं किया था.
इसके अलावा उनके रफी साहब के साथ भी कुछ मतभेद थे जो काफी चर्चा मे रहें थे.
उनकी बहन आशा भोसले के साथ उनके रिश्तें भी कई बार विवादों में रहे,क्योंकि वो उनकी पहली प्रतिस्पर्धी थी. 1948 से लेकर 1974 तक 20 विभिन्न भारतीय भाषाओं में 25,000 सोलो,डुएट और कोरस गाने के लिए इनका नाम गिनीज़ बूक में शामिल हुआ था. लेकिन मोहम्मद रफी ने कुछ आंकड़ों के साथ इस पर सवाल लगाया था और 1991 के बाद इस रिकॉर्ड को गिनीज बुक रिकॉर्ड से हटा लिया गया.
फिल्मफेयर अवार्ड्स में पहले बेस्ट प्लेबैक सिंगर की केटेगरी का कोई अवार्ड नहीं होता था लेकिन लता जी के विरोध के बाद 1958 में इसे शामिल किया गया.
इन्हें सबसे पहले 1958 में आजा रे परदेसी गाने के लिए बेस्ट प्लेबैक सिंगर का अवार्ड मिला था और 1966 तक लगातार मिलता रहा और इस तरह इस अवार्ड पर उनका एकछत्र अधिकार हो गया था. 1969 में उन्होंने विनम्रता के साथ ये अवार्ड लेना बंद कर दिया ताकि नए टेलेंट को प्रमोट किया जा सके. सन 1990 में पुनः “लेकिन” फिल्म के लिए यह ये अवार्ड हासिल करने वाली सबसे बुजुर्ग 61 वर्ष की महिला थी.
लता जी मीडिया की अटेंशन पसंद नहीं करती और मेकअप से भी दूर रहती हैं. अपने अधूरे सपनों के बारे में उन्होंने बताया था कि वो दिलीप कुमार के लिए गाना चाहती थी और के एल सहगल से मिलना चाहती थी. माइकल जेकसन के बारे में भी उनका कहना था कि मुझे उनसे मिलने का मौका नहीं मिला,इसका मुझे हमेशा खेद रहेगा.
2004 में “वीर ज़ारा” के लिए गाते हुए उन्होंने कहा था कि मदन मोहन और यश जी मेरे भाई जैसे हैं,मुझे ऐसा लगता हैं कि मै समय में पीछे चली गयी हूँ.
डाइमंड के लिए अपने शौक के बारे में उन्होंने कहा था कि मैं जब छोटी थी तब से मुझे डाईमंड का शौक हैं लेकिन तब हमारी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी,लेकिन मेरी नजर हमेशा इन पर रहती थी, मैंने सोच लिया था की जब तक सिंगर नहीं बन जाती कोई ज्वेलरी नहीं पहनूंगी.
म्यूजिक कम्पोजीशन के बारे में उन्होंने कहा था कि ये मुझे सूट नहीं करता,हालांकि मैंने ये काम पहले किया हैं लेकिन मुझे ये जमा नहीं ,मुझे नहीं लगता कि मुझमें इतना धैर्य हैं.
लता मंगेशकर की जीवनी Lata Mangeshkar Biography in Hindi
शनिवार, 25 जून 2022
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लता मंगेशकर की जीवनी Lata Mangeshkar Biography in Hindi
बचपन और प्रारंभिक जीवन :
लता का नाम पहले हेमा रखा गया था लेकिन बाद में उनके पिता ने अपने एक प्ले “भाव बंधन” के चरित्र से प्रभावित होकर इनका नाम लता कर दिया था. बचपन में ये सभी भाई-बहन अपने पिता से क्लासिकल संगीत सीखते थे.लता ने अपने पिता के म्यूजिकल प्ले में कम करना बचपन से ही शुरू कर दिया था. वें क्लासिकल म्यूजिक की ट्रेनिंग अमानत खान, पंडित तुलसीदास शर्मा और अमन अली खान से लेती थी. उस समय वो के.एल सहगल के म्यूजिक से काफी प्रभावित थी.ये जानना बहुत ही आश्चर्यजनक हैं लेकिन सत्य भी हैं कि उन्होंने कोई भी औपचारिक शिक्षा हासिल नहीं की है. उनके स्कूल नही जाने के पीछे ये कहानी भी प्रचलित हैं की वो स्कूल में अपने साथ के बच्चों को गाना सिखाने लग गयी थी,और टीचर ने जब उन्हें ऐसा करने से रोका तो वो नाराज हो गयी और फिर कभी स्कूल नहीं गयी. इसके अलावा एक कारण यह भी कि वो अपनी छोटी बहिन आशा को अपने साथ स्कूल नहीं ले जा सकती थी इसलिए वो भी स्कूल नहीं गयी.लता जब 13 वर्ष की थी तब उनके पिता का देहांत हो गया था,इस कारण घर की आर्थिक जिम्मेदारी उन पर ही आ गयी थी.
करियर:
उन्होंने 1942 में गाना स्टार्ट किया था,और इसके बाद 70 सालों से वो गायन के क्षेत्र में सक्रिय रही . इन्होने एक हजार से अधिक फिल्मों और 36 से अधिक भाषाओं के गानों में अपनी आवाज दी है.
लता जी ने सर्वप्रथम 1938 में शोलापुर के नूतन थिएटर में परफोर्म किया था,जहां उन्होंने रंग खंबवटी और 2 अन्य मराठी गाने गाये थे.लताजी ने बॉलीवुड में एंट्री तब की थी जब नूरजहाँ और शमशाद बेगम जैसी भारी आवाजों वाली गायिकाएं मौजूद थी,ऐसे में उनके लिए अपनी जगह बनाना मुश्किल काम थालताजी ने 1940 से लेकर 1980 तक फिल्मों में जो गाने दिए वो उनके प्लेबैक सिंगिंग के करियर में रखे जा सकते हैं,लेकिन ये मापदंड बहुत ही कम होगा उनके करियर को समझने के लिए, क्युकी वो सदी की महागायिका हैं इसलिए वर्षों,गानों या अवार्ड में करियर को समझना उनकी प्रतिभा के साथ न्याय करना नहीं होगा.उन्होंने वैजयंती माला से लेकर प्रीटी जिंटा तक की जनरेशन की अभिनेत्रियों के लिए आवाज दी हैं,जिससे साफ समझा जा सकता हैं कि उन्होंने बॉलीवुड की हर जनेरेशन की लगभग हर बड़ी अभिनेत्री के लिए गाना गाया हैं.वास्तव में ना केवल उनकी आवाज़ ने बल्कि उन्होंने भी 3 पीढ़ी के म्यूजिक कम्पोजर और मेल सिंगर्स के साथ भी सामंजस्य बिठाया था उनकी गायकी ने कभी कोई सरहद नहीं देखी,भारत में और बाहर हर जगह उनकी आवाज़ को पसंद किया जाता रहा हैं,और उन्हें उतना ही सम्मान भी मिलता रहा हैं.अपने करियर की शुरुआत में उन्होंने एक्टिंग भी की थी और म्यूजिक डाइरेक्टर के तौर पर भी काम किया था लेकिन वो इतना सफल नहीं रहा.
सपना चौधरी का जीवन परिचय पढ़े
प्लेबैक सिंगर:
संगीत की इस महनायिका ने ऑफिशियल रूप से गाने की शुरुआत अपने पिता के देहांत के तुरंत बाद 1942 में की थी. उनके पारिवारिक मित्र विनायक दामोदर कर्नाटकी ने उन्हें जॉब खोजने में मदद की और उन्हें मराठी और हिंदी फिल्मों में काम दिलाया.
लताजी के करियर की शुरुआत भी मुश्किल ही रही थी,उन्हें आसानी से काम नहीं मिला था. उनका बतौर प्लेबैक सिंगर पहला गाना “नाचू या गाणे,खेलु सारी मानी हौस भारी” का रिकॉर्ड हुआ था,यह गाना मराठी फिल्म “किती हसाल” के लिए बनाया गया था और इसके कंपोजर सदाशिवराव नेवरेकर थे. लेकिन दुर्भाग्यवश फिल्म रिलीज से पहले इस गाने को हटा दिया गया. इसके बाद उनका पहला हिंदी गाना 1943 में रिकॉर्ड हुआ.
1945 में लता मुंबई शिफ्ट हो गई थी, यहाँ भी उन्हें बहुत से म्यूजिक कंपोजर ने ये कहकर रिजेक्ट किया कि उनकी आवाज़ बहूत पतली और तीखी हैं,जो कि उस समय पसंद किये जा रहे गानों से बिलकुल विपरीत थी. उन्हें कई बार सुप्रसिद्ध गायिका नूरजहाँ के लिए गाने के लिए भी कहा जाता था.
विनायक के अलावा गुलाम हैदर ने भी लता की करियर में काफी मदद की. इन्हे “दिल मेरा तोडा,मुझे कही का ना छोड़ा” गाने से पहचान मिली थी, ये गाना 1948 में मजदूर फिल्म में आया था. उनका पहला हिट गाना “आएगा आनेवाला”.
इसके बाद उन्होंने इंडस्ट्री के सभी बड़े म्यूजिक डाइरेक्टर और प्लेबैक सिंगर के साथ काम मिलना शुरू हो गया. उन्होंने सचिन देव बर्मन,सलिल चौधरी,संकर जयकिशन,मदन मोहन,कल्यानजी-आनंदजी,खय्याम और पंडित अमरनाथ हुसनलाल भगत राम के साथ काम किया था. इन्हे 1958 में अपने जीवन का सबसे पहला फिल्मफेयर अवार्ड मधुमती फिल्म के “आजा रे परदेसी” गाने के लिए मिला जिसके म्यूजिक डायरेक्टर सलिल चौधरी थे.
उन्होंने राग आधारित गाने भी गाये थे जैसे 1952 में बैजू बावरा के लिए राग भैरव पर “मोहे भूल गए सावरिया” साथ ही कुछ पश्चिमी थीम के गाने जैसे “अजीब दास्ता हैं और कुछ भजन जैसे हम दोनों मूवी में “अल्लाह तेरो नाम” भी गाये थे.
उन दिनों ही उन्होंने मराठी और तमिल से क्षेत्रीय भाषों में करियर शुरू किया था. उनका तमिल में पहला गाना 1956 में “वानराधम” के लिए “ एंथन कन्नालन” गाया था.
मराठी फिल्म के लिए उन्होंने अपने भाई हृदयनाथ मंगेश्कर के लिए गाना गया था जो कि जैत रे जैत जैसी फिल्म के म्यूजिक डायरेक्टर थे. लता जी ने बंगाली फिल्म के म्यूजिक डायरेक्टर जैसे सलिल चौधरी और हेमंत कुमार के लिए भी गाना गाया. उन्होंने 1967 में “क्रान्तिवीरा सांगोली” फिल्म में लक्ष्मण वेर्लेकर के कम्पोज किये “बेल्लाने बेलागयिथू” से कन्नड़ में डेब्यू किया था.
मलयालम में उन्होंने अपनी एकमात्र नेल्लू फिल्म के लिए “कदली चेंकाडाली” गाना गाया था जिसे सलिल चौधरी ने कम्पोज किया था और वायलर रामवर्मा ने लिखा था.
उन्होंने मोहम्मद रफ़ी, मुकेश, हेमंत कुमार, महेंद्र कपूर और मन्ना डे के साथ कई प्रोजेक्ट्स किये थे. अब वो सिंगिंग स्टार बन गयी थी,हर प्रोडूसर,म्यूजिक डायरेक्टर और एक्टर उनके साथ काम करना चाहता था.
1970 और 1980 के दशक में उनके किशोर कुमार के साथ गाये ड्यूएट बहुत प्रसिद्ध हुए,जिन्हें आज तक काफी पसंद किया जाता हैं. कुछ गाने जैसे आराधना “कोरा कागज़” (1969),”आंधी” फिल्म का तेरे बिना जिंदगी से (1971) अभिमान का “तेरे मेरे मिलन की” (1973), घर का आप की आँखों में कुछ” (1978) कुछ ऐसे गाने हैं जिन्हें सदियों तक नहीं भुलाया जा सकता.
1980 में लताजी ने सचिन बर्मन के बेटे राहुल देव बर्मन के साथ और आर.डी. बर्मन के साथ काम किया था. आर.डी. बर्मन उनके बहन आशा भोंसले के पति है. उन्होने लाताजी के साथ रॉकी का “क्या यही प्यार हैं”,अगर तुम ना होते का “हमें और जीने की, मासूम में “तुझसे नाराज नहीं जिंदगी” आदि गाने गाये.
कुछ वर्ष पहले धीरे-धीरे गिरते स्वास्थ्य के चलते लता जी ने काम करना कम कर दिया,और कुछ चुनिंदा गानों में ही अपनी आवाज दी. उन्होंने अपने म्यूजिकल करियर में बहुत से म्यूजिक एल्बम भी लांच किये थे.
म्यूजिक डाइरेक्टर:
लता मंगेशकर ने कुछ मराठी फिल्मों में बतौर म्यूजिक डायरेक्टर काम भी किया था, जिनमे सबसे पहले 1955 में “राम राम पाव्हाने” थी. उनके दुसरे अन्य प्रोजेक्ट्स मराठा टीटूका मेलवा (1963), मोहित्या मंजुला (1963).सधी मनसे (1965) और तम्बदी माटी (1969) थे, उन्होंने महाराष्ट्र स्टेट का बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर अवार्ड भी जीता था ये अवार्ड उन्हें साधी मनसे फिल्म के ऐर्नाच्या देवा के लिए मिला था.
प्रोड्यूसर ;
लता मंगेशकर ने प्रोड्यूसर के तौर पर भी कुछ फिल्म्स की थी जैसे “वादल”,ये मराठी फिल्म 1953 में आई थी, इसके अलावा सी रामचंद्रन के साथ को-प्रोड्यूसर के तौर पर झांझर,1955 में कंचन के लिए और 1990 में “लेकिन….”. उन्होंने 2012 में अपना म्यूजिकल लेबल एलटी म्यूजिक भी लांच किया,और अपनी छोटी बहिन के साथ भक्ति म्यूजिक लांच किया.
लताजी को मिले अवार्ड्स और सम्मान:
लताजी को उनके करियर में बहुत से सम्मान और अवार्ड मिले हैं. जिनमें राष्ट्र के सर्वोच्च पुरस्कारों में शामिल पद्म भूषण से लेकर भारत रत्न तक भी शामिल हैं. पद्म भूषण पुरस्कार उन्हें 1969 में मिला था इसके बाद 1989 में दादासाहेब फाल्के पुरूस्कार मिला. इसके अलावा 1997 में उन्हें महाराष्ट्र भूषण अवार्ड और 1999 में पद्म-विभुषण अवार्ड मिला था.
लता जी को अपने जीवन का पहला नेशनल अवार्ड परिचय फिल्म के लिए मिला था. उन्होंने 3 नेशनल फिल्म अवार्ड क्रमश: 1972,1974 और 1990 में जीते थे. इसके अलावा 2008 में उन्हें भारत के 60वे स्वतंत्रता दिवस पर “वन टाइम अवार्ड फॉर लाइफटाइम अचीवमेंट” अवार्ड भी मिला था.
लता जी से जुड़े हुए विवाद :
लता जी ने जितनी सफलता की ऊँचाइयाँ देखी हैं उतने ही विवादों का सामना भी किया हैं. एस.डी बर्मन के साथ उनके रिलेशनशिप की चर्चाएँ होती रहती थी,और कुछ विवादित कारणों के चलते ही इस जोड़ी ने 1958 से लेकर 1962 तक साथ काम नहीं किया था.
इसके अलावा उनके रफी साहब के साथ भी कुछ मतभेद थे जो काफी चर्चा मे रहें थे.
उनकी बहन आशा भोसले के साथ उनके रिश्तें भी कई बार विवादों में रहे,क्योंकि वो उनकी पहली प्रतिस्पर्धी थी. 1948 से लेकर 1974 तक 20 विभिन्न भारतीय भाषाओं में 25,000 सोलो,डुएट और कोरस गाने के लिए इनका नाम गिनीज़ बूक में शामिल हुआ था. लेकिन मोहम्मद रफी ने कुछ आंकड़ों के साथ इस पर सवाल लगाया था और 1991 के बाद इस रिकॉर्ड को गिनीज बुक रिकॉर्ड से हटा लिया गया.
लताजी से जुड़े रोचक तथ्य :
एक कार्यक्रम में उन्होंने जब “ए मेरे वतन के लोगो को,जरा आँख में भर लो पानी” गाया तो तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरूजी के आँखों में भी आंसू आ गये थे.फिल्मफेयर अवार्ड्स में पहले बेस्ट प्लेबैक सिंगर की केटेगरी का कोई अवार्ड नहीं होता था लेकिन लता जी के विरोध के बाद 1958 में इसे शामिल किया गया.
इन्हें सबसे पहले 1958 में आजा रे परदेसी गाने के लिए बेस्ट प्लेबैक सिंगर का अवार्ड मिला था और 1966 तक लगातार मिलता रहा और इस तरह इस अवार्ड पर उनका एकछत्र अधिकार हो गया था. 1969 में उन्होंने विनम्रता के साथ ये अवार्ड लेना बंद कर दिया ताकि नए टेलेंट को प्रमोट किया जा सके. सन 1990 में पुनः “लेकिन” फिल्म के लिए यह ये अवार्ड हासिल करने वाली सबसे बुजुर्ग 61 वर्ष की महिला थी.
लता जी मीडिया की अटेंशन पसंद नहीं करती और मेकअप से भी दूर रहती हैं. अपने अधूरे सपनों के बारे में उन्होंने बताया था कि वो दिलीप कुमार के लिए गाना चाहती थी और के एल सहगल से मिलना चाहती थी. माइकल जेकसन के बारे में भी उनका कहना था कि मुझे उनसे मिलने का मौका नहीं मिला,इसका मुझे हमेशा खेद रहेगा.
लताजी के निजी विचार:
2004 में “वीर ज़ारा” के लिए गाते हुए उन्होंने कहा था कि मदन मोहन और यश जी मेरे भाई जैसे हैं,मुझे ऐसा लगता हैं कि मै समय में पीछे चली गयी हूँ.
डाइमंड के लिए अपने शौक के बारे में उन्होंने कहा था कि मैं जब छोटी थी तब से मुझे डाईमंड का शौक हैं लेकिन तब हमारी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी,लेकिन मेरी नजर हमेशा इन पर रहती थी, मैंने सोच लिया था की जब तक सिंगर नहीं बन जाती कोई ज्वेलरी नहीं पहनूंगी.
म्यूजिक कम्पोजीशन के बारे में उन्होंने कहा था कि ये मुझे सूट नहीं करता,हालांकि मैंने ये काम पहले किया हैं लेकिन मुझे ये जमा नहीं ,मुझे नहीं लगता कि मुझमें इतना धैर्य हैं.
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