Biography of मंगल पांडे (Mangal Pandey) | मंगल पाण्डेय की जीवनी :: jeevangatha.com

Biography of मंगल पांडे (Mangal Pandey)

Mangal Pandey image

जन्म: 30 जनवरी 1831, नगवा गांव, बलिया जिला

निधन: 8 अप्रैल 1857, बैरकपुर, पश्चिम बंगाल

कार्य: सन् 1857 के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रदूत

मंगल पांडे (Mangal Pandey) न तो महान नेता थे न महान योद्धा थे | वे थे सेना के एक साधारण सिपाही – ऐसे सिपाही जिनकी रगो में देशप्रेम का सागर प्रवाहित हुआ करता और जो मातामही के लिए बलिदान होने की कामना मन में रखता था | पांडे उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के एक ग्राम के निवासी थे | साधारण ब्राह्मण वंश में उत्पन्न हुए थे | अधिक पढ़े-लिखे नही थे | साधारण हिंदी भाषा जानते थे | चढती हुयी तरुणाई में ही अंग्रेजी सेना में भर्ती हो गये थे | 1857 ई. में पांडे कलकत्ता के पास बैरकपुर में निवास करते थे | बड़े साहसी थे बड़े हंसमुख थे और बड़े देशप्रेमी थे | उनके अनेक साथी थे अनेक मित्र थे | उन्होंने अपने प्रेम और अपने अच्छे व्यवहार से अपने साथियों का मन जीत लिया था | 
जिस प्रकार हवा के झोंको से फिर्हरी नाचती है उसी प्रकार पांडे के संकेतो पर उनके साथियों के मन नाचा करते थे 

आप पढ़ रहे हैं : Biography of मंगल पांडे (Mangal Pandey) | मंगल पाण्डेय की जीवनी 

1857 ई. के दिन थे | नाना साहब के प्रयत्नों से भारत के समस्त फौजियों के मन में विद्रोह की आग जाग उठी | अंग्रेजो को भारत से निकालने के लिए एक कार्यक्रम तैयार किया गया था | उस कार्यक्रम के अनुसार सारे भारत में 31 मई को महाक्रान्ति का यज्ञ होने वाला था किन्तु मंगल पांडे (Mangal Pandey) ने 29 मार्च को ही गोली चलाकर महाक्रान्ति का शुभारम्भ कर दिया था | कुछ लोग इसके लिए मंगल पांडे को दोषी ठहराते थे |
 वे कहते है कि मंगल पांडे (Mangal Pandey) ने 29 मार्च को ही गोली चलाकर भूल की | यदि वे गोली चलाने में जल्दबाजी न करते तो महाक्रान्ति असफल न होती | 

किन्तु मंगल पांडे (Mangal Pandey) को दोषी ठहराना उचित नही जान पड़ता | जो स्थितिया सामने थी उन्हें देखते हुए कोई भी देशभक्त अपने वश में नही रहता | मंगल पांडे ने 29 मार्च को ही गोली क्यों चलाई , इस बात को समझाने के लिए हमे दो बातो पर ध्यान देना चाहिए |

जिन दिनों 31 मार्च को होने वाले क्रांति यज्ञ की चर्चा जोरो से चल रही थी उन्ही दिनों कलकत्ता के सैनिको में यह अफवाह फ़ैली की अंग्रेज सरकार को कारतूस सैनिको को देती है और जिन्हें वे अपने दांतों से काटकर खोलते है उनमे सूअर और गाय की चर्बी लगी रहती है | इस अफवाह ने हिन्दू और मुसलमान दोनों धर्मो के सैनिको में व्याकुलता पैदा कर दी | 

दोनों धर्मो के सैनिक अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए तैयार हो गये | दुसरे सैनिक तो मौन ही रहे पर मंगल पांडे से अपने देश और धर्म का अपमान सहन नही हुआ | उन्हें एक क्षण युग के समान लम्बा लगने लगा | वे शीघ्र अंग्रेज सरकार की छाती गोलियों से छलने कर मृत्यु की गोद में सोने के लिए उतावले हो उठे |


एक ओर बात थी जिसके कारण मंगल पांडे (Mangal Pandey) को 29 मार्च को ही गोली चलाने पड़ी | लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह को लखनऊ निर्वासित कर दिया गया था | उन दिनों वाजिद अली शाह अपने वजीर अलीनकी खा के साथ बैरकपुर के पास निवास करते थे | वाजिद अली शाह और अलीन्की खा दोनों के हृदय में अंग्रेजो के विरुद्ध घृणा और शत्रुत्ता की आग जल रही थी | दोनों ही बड़े कौशल के साथ सैनिको से मिलते थे , उन्हें क्रांति के लिए उकसाया करते थे | कहा जाता है कि अलीनकी खा के द्वारा उत्तेजित किये जाने के कारण ही मंगल पांडे ने 29 मार्च को ही गोली चला दी थी | जो हो , मंगल पांडे ने निश्चित समय से पूर्व ही गोली चलाकर 1857 ई. की महाक्रान्ति का समारम्भ किया था |


सैनिको में जब अफवाह फ़ैली तो उन्होंने विद्रोह करने का निश्चय किया | अंग्रेजो को जब इसका पता चला तो उन्होंने भी विद्रोह को दबाने का निश्चय किया | उन्होंने दो काम किये | एक तो यह कि बर्मा से गोरी पलटन मंगाई और दुसरे 19 नम्बर की पलटन को भंग करने का विचार किया और सैनिको के वस्त्रो और उनके हथियारों को छीनने का निश्चय किया | 19 नवम्बर की पलटन के सैनिको को जब इन बातो का पता चला तो उनके भीतर ही विद्रोहाग्नि ओर अधिक तीव्र हो उठी | उन्होंने निश्चय किया कि प्राण दे , पर देश और धर्म का अपमान सहन नही करेंगे |

मंगल पांडे (Mangal Pandey) 19 नम्बर पलटन के सैनिक थे | उन्हें जब अंग्रेजो के द्वारा किये जाने वाले दमन की तैयारियों का पता चला तो उनके हृदय में अग्नि का सागर उमड़ पड़ा | उन्होंने अपने साथियों और मित्रो से कहा “31 मई तक रुकना उचित नही है हमे शीघ्र विद्रोह की आग जला देनी चाहिए | 
देर करने से हो सकता है कि अंग्रेज अपने को शक्तिशाली बना ले” | किन्तु मंगल पांडे की यह बात नही मानी गयी | जो लोग महाक्रान्ति की तैयारियों में लगे हुए थे उन्होंने मंगल पांडे की बात का विरोध किया | किन्तु मंगल पांडे को विद्रोह के लिए 31 मई तक रुकना सहन नही था |

मंगल पांडे (Mangal Pandey) अपने साथियों और मित्रो को अपने विचारो के सांचे में ढालने का बहुत प्रयत्न किया किन्तु इस संबध में कोई भी उनकी बात मानने के लिए तैयार नही हुआ | उन्होंने जब यह देखा कि उनका कोई भी साथ देने के लिए तैयार नही हो रहा है तो उन्होंने स्वयं अकेले ही विद्रोह की आग को जलाने का निश्चय किया |

29 मार्च का दिन था | लगभग 10 बज रहे थे | मंगल पांडे ने बंदूक उठाकर उसमे गोली भरी | वे हाथ में बंदूक लेकर उस मैदान में जा पहुचे जहां सैनिक परेड करते थे | उन्होंने सैनिको को संबोधित करते हुए कहा “भाइयो , चुपचाप क्यों बैठे हो , देश और धर्म तुम्हे पुकार रहा है | उठो मेरा साथ दो , फिरंगियों को देश से बाहर निकाल दो |देश की बागडोर उनके हाथो से छीन लो” | किन्तु सैनिको ने कुछ भी उत्तर नही दिया | वे अपने स्थान पर बैठे ही रहे , चुपचाप मंगल पांडे भी बाते सुनते रहे |

मंगल पांडे परेड के मैदान में सिंह की तरह गर्जना कर रहे थे | इसी समय मेजर ह्युसन वहा उपस्थित हुआ | मंगल पांडे की बाते उसके भी कानो में पड़ी | उसने सैनिको की ओर देखते हुए कहा “पांडे को गिरफ्तार कर लो” | पर कोई सैनिक नही उठा | स्पष्ट है कि सैनिको की सहानुभूति मंगल पांडे के प्रति थी | वे मंगल पांडे का साथ तो नही दे रहे थे किन्तु सत्य ही है कि मंगल पांडे की तरह वे भी अंग्रेजो का विनाश चाहते थे | सैनिको को मौन देखकर ह्युसन गरज उठा “मेरा हुक्म मानो , पांडे को गिरफ्तार करो “|

ह्युसन के शब्दों के उत्तर में मंगल पांडे की बंदूक गरज उठी “धांय धांय” | बंदूक की गोली ह्युसन की छाती में जा लगी | वह धरती पर गिरकर प्राणशून्य हो गया |
इस बगावत और मंगल पांडे की शहादत की खबर फैलते ही अंग्रेजों के खिलाफ जगह-जगह संघर्ष भड़क उठा। यद्यपि अंग्रेज इस विद्रोह को दबाने में सफल हो गए, लेकिन मंगल द्वारा 1857 में बोया गया क्रांति का बीज 90 साल बाद आजादी के वृक्ष के रूप में तब्दील हो गया।

आप पढ़ रहे हैं : Biography of मंगल पांडे (Mangal Pandey) | मंगल पाण्डेय की जीवनी 

इस विद्रोह (जिसे भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है) में सैनिकों समेत अपदस्थ राजा-रजवाड़े, किसान और मजदूर भी शामिल हुए और अंग्रेजी हुकुमत को करारा झटका दिया। इस विद्रोह ने अंग्रेजों को स्पष्ट संदेश दे दिया कि अब भारत पर राज्य करना उतना आसान नहीं है जितना वे समझ रहे थे।

मंगल पांडे के जीवन के पर फिल्म और नाटक प्रदर्शित हुए हैं और पुस्तकें भी लिखी जा चुकी हैं। सन 2005 में प्रसिद्ध अभिनेता आमिर खान द्वारा अभिनित ‘मंगल पांडे: द राइजिंग’ प्रदर्शित हुई। इस फिल्म का निर्देशन केतन मेहता ने किया था। सन 2005 में ही ‘द रोटी रिबेलियन’ नामक नाटक का भी मंचन किया गया। इस नाटक का लेखन और निर्देशन सुप्रिया करुणाकरण ने किया था।

जेडी स्मिथ के प्रथम उपन्यास ‘वाइट टीथ’ में भी मंगल पांडे का जिक्र है।

सन 1857 के विद्रोह के पश्चात अंग्रेजों के बीच ‘पैंडी’ शब्द बहुत प्रचलित हुआ, जिसका अभिप्राय था गद्दार या विद्रोही।

भारत सरकार ने 5 अक्टूबर 1984 में मंगल पांडे (Mangal Pandey) के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया।

दोस्तों यह पोस्ट आपको कैसी लगी कृपया हमें कमेंट के माध्यम से बताएं like करें share करें ...

धन्यवाद ....
Previous article
Next article

Leave Comments

एक टिप्पणी भेजें

Article Top Ads

Article Center Ads 1

Ad Center Article 2

Ads Under Articles