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मदर टेरेसा प्रारंभिक जीवन व परिवार (Mother teresa early childhood education )–
क्रमांक | जीवन परिचय बिंदु | मदर टेरेसा जीवन परिचय |
1. | पूरा नाम | अगनेस गोंझा बोयाजिजू |
2. | जन्म | 26 अगस्त 1910 |
3. | जन्म स्थान | स्कॉप्जे शहर, मसेदोनिया |
4. | माता – पिता | द्रना बोयाजू – निकोला बोयाजू |
5. | मृत्यु | 5 सितम्बर 1997 |
6. | भाई बहन | 1 भाई 1 बहन |
7. | धर्म | कैथलिक |
8. | कार्य | मिशनरी ऑफ चैरिटी की स्थापना |
मदर टेरेसा का शुरुआती जीवन (mother teresa early life)
मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 (mother teresa jeevan aparichay) को मैसिडोनिया (mother teresaborn country) के स्कोप्जे में एक अल्बिनियाई परिवार में हुआ था। मदर टेरेसा के जन्म के समय मैसिडोनिया विशाल औटोमन साम्राज्य का हिस्सा था।
मदर टेरेसा का वस्तविक नाम अगनेस गोंझा बोयाजिजू था (mother teresa full name), अल्बिनिया भाषा में फूल की कली को गोंझा कहा जाता है। उनके पिता निकोला बोयाजू एक आम व्यापारी थे, जो स्थानीय राजनीति में भी खासे एक्टिव रहते थे। पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी मदर टेरेसा महज आठ साल की थीं, जब उनके पिता की मृत्यु हो गई और उनके पालन-पोषण की जिम्मेदारी पूरी तरह से उनकी माता द्राना बोयाजू पर आ गई।
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मदर टेरेसा का मिशनरियोंसे लगाव (mother teresa)
मदर टेरेसा की जीवनी लिखने वाले जोन ग्रेफ क्लूकास के अनुसार, मदर टेरेसा को बचपन से ही ईसाई मिशनरियों के बारे में जानकारी हासिल करने में खासी दिलचस्पी थी। वो अक्सर मिशनरियों की किताबें और बंगाल में उनके कार्यों से बेहद प्रभावित रहती थीं।
शायद यही कारण था कि जिस उम्र में आम बच्चे खिलौनों और बचपन की यादें सहजने में मशगूल रहते हैं, वहीं मदर टेरेसा ने महज 12 साल की उम्र में अपना सारा जीवन यीशु मसीह करने का फैसला कर लिया था। (mother teresa jesus jivani)
मदर टेरेसा ने घर को कहा अलविदा(mother teresa family)
साल 1928 को जब मदर टेरेसा महज 18 साल की थीं, उन्होंने घर छोड़ने का निरणय लिया। जिसके बाद मदर टेरेसा दोबारा कभी अपनी माता और बहनों से नहीं मिलीं। (mother teresa albania)
घर को अलविदा कहने के बाद मदर टेरेसा आयरलैंड (mother teresaIreland) के रथफर्नम में लोरेटो स्थित कुछ नन से मिलीं। हालांकि यूरोपिय देश होने के चलते आयरलैंड में अंग्रेजी का बोलबाला था, जो अब मदर टेरेसा के सामने सबसे बड़ी समस्या थी। लिहाजा मदर टेरेसा ने अंग्रेजी सीखना शुरु कर दिया।
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भारत पहुंची मदर टेरेसा (mother Teresa india)
1929 में मदर टेरेसा ने भारत का रुख किया। भारत से दूर रह कर भी बंगाल की कहानियों में दिलचस्पी लेने वाली मदर टेरेसा ने सबसे पहले हिमालय पर्वतों के निचले हिस्से में बसे बंगाल के खूबसूरत शहर दार्जलिंग जाने का फैसला किया। (mother Teresa bengal)
दार्जलिंग आने के बाद मदर टेरेसा ने बंगाली भाषा सीखी और कॉन्वेंट के पास सेंट टेरेसा स्कूल में पढ़ाना शुरु कर दिया। 24 मई 1931 को मदर टेरेसा ने यहीं पर अपनी पहली धार्मिक प्रतिज्ञा ग्रहण की।
जिसके बाद मदर टेरेसा ने पूर्वी कलकत्ता में स्थित लॉरेटो कॉन्वेंट स्कूल में स्कूल की संचालिका का पभार संभाला। (mother Teresa kolkata)
मदर टेरेसा ने छोड़ा अध्यापन (mother teresa teachings)
40 का दशक न सिर्फ बंगाल बल्कि देश के लिए काफी बदलावों का दशक रहा। दूसरे विश्वयुद्ध से शुरु हुआ यह सफर भारत छोड़ो आंदोलन और ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध कई विरोध प्रदर्शनों से होता हुआ देश की आजादी और भारत-पाकिस्तान बंटवारें तक जा पहुंचा।
वहीं राष्ट्रवाद का केंद्र होने के चलते बंगाल भी इनसे अछूता न रहा। ऐसे में बंगाल में फैली गरीबी, 1943 में बंगाल भूखमरी को देखकर मदर टेरेसा का आम लोगों की तरफ लगाव स्वाभाविक था। लेकिन 1946 में बंगाल की सड़कों पर हिन्दू-मुस्लिम दंगों में हुए खून-खराबे ने न सिर्फ मदर टेरेसा को बल्कि पूरे देश को झकझोर कर रख दिया।
लिहाजा 20 साल तक अध्यापन से जुड़ी रहने वाली मदर टेरेसा ने स्कूल छोड़कर मन की आवाज सुनते हुए अपना सारा जीवन गरीबों और बिमारों की सेवा को समर्पित करने का कठोर निर्णय लिया।
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आखिरकार साल 1948 में मदर टेरेसा नीले बॉर्डर वाली दो सादी सफेद साड़ी लेकर नर्स की ट्रेनिंग लेने के लिए पटना रवाना हो गईं। 1949 में मदर टेरेसा ने कलकत्ता के मोतीझील में गरीब और भूखें बच्चों के लिए एक स्कूल की नींव रखी।
मदर टेरेसा बताती हैं कि, यह एक ऐसा दौर था जब मेरे पास खाने के भी पैसे नहीं थे और मुझे लोगों से खाना मांग कर अपना पेट भरना पड़ता था।
हालांकि यह दिन भी बीत गए और बेहद कम समय में गरीबों की सेवा करने वाली मदर टेरेसा प्रधानमंत्री सहित कई बड़े अधिकारियों की नजर में आने लगी।
अतंर्राष्ट्रीय चैरिटी (mother teresa international charity)
मदर टेरेसा कहतीं थीं-(mother teresa quotes)
“खून से, मैं अल्बानियाई हूं, नागरिकता से, एक भारतीय,
विश्वास से, मैं एक कैथोलिक नन हूं और मन दुनिया से संबंधित
मेरा दिल हर उस दिल से जुड़ा है, जो यीशु के करीब है।”
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मदर टेरेसा को पांच भाषाओं – बंगाली, अंग्रेजी, अल्बिनिया, सरबिया और हिन्दी में महारथ हासिल थी। जिसका कारण था कि वो न सिर्फ दुनिया के कई देशों में गईं बल्कि वहां स्थित जरुरतमंदों की हर संभव मदद भी की।(mother teresa nationality)
साल 1982 सीज ऑफ बरुत के दौरान इजराइल और फिलिस्तीन के बीच सीजफायर टूटने के चलते मदर टेरेसा ने पास के अस्पताल में फंसे 37 बच्चों की जान बचाई थी। यही नहीं युद्ध में घायल सैनिकों के इलाज के लिए मदर टेरेसा युद्धक्षेत्र तक गईं। इसके अलावा 1988 में भूकंप से मची तबाही के बाद मदर टेरेसा अर्मेनिया और फिर बाद में यूथोपिया और 1991 में अल्बनिया भी गईं।
1996 तक, टेरेसा ने 100 से अधिक देशों में 517 मिशन संचालित किए। वहीं उनकी संस्था मिशनरीज ऑफ चैरिटी ने दुनिया भर के 450 केंद्रों में हजारों गरीब परिवारों की सेवा की।
मदर टेरेसा का निधन (mother teresa death)
1983 में रोम दौरे के दौरान मदर टेरेसा को दिल का दौरा पड़ा, जिसके बाद से अक्सर उनका स्वास्थय खराब रहने लगा। 1996 में मलेरिया की चपेट में आने के बाद पता चला कि मदर टेरसा को दिनल की गंभीर बिमारी थी। वहीं दिल की सर्जरी कराने के बाद भी उनकी हालत में कुछ खास सुधार नहीं हुआ।(mother teresa death cause)
इसी कड़ी में खराब स्वास्थय के मद्देनजर मदर टेरेसा ने मिशनरीज ऑफ चैरिटी के निदेशक पद से इस्तीफा दे दिया और आखिरकार 5 सितम्बर 1997 के दिन कलकत्ता में मदर टेरेसा ने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।
उनके निधन के समय तक मिशनरीज ऑफ चैरिटी के 4000 से ज्यादा सदस्य दुनिया के 123 देशों में मिशन को साकार बनाने की जद्दोजहद में जुटे थे। वहीं मदर टेरेसा के निधन से न सिर्फ देश बल्कि समूची दुनिया में शोक की लहर दौड़ उठी।(mother teresa missionary)
मदर टेरेसा के निधन पर संयुक्त राष्ट्र के प्रधान सचिव ने प्रतिक्रिया दर्ज कराते हुए कहा कि, वह“दुनिया को शांति का संदेश देने वाली मदर टेरेसा अपने आप में एक संयुक्त राष्ट्र थीं।”
मदर टेरेसा के पुरस्कार एंव सम्मान(mother teresa awards and honours)
Awards/Honours | Year |
Padma Shri Award | 1962 |
Pope John XXIII Peace Prize | 1971 |
Prize of the Good Samaritan, Boston | 1971 |
Kennedy Prize | 1971 |
Jawaharlal Nehru Award for International Understanding | 1972 |
angel of charity from the President of India | 1972 |
Templeton Prize | 1973 |
Albert Schweitzer International Prize | 1975 |
Honorary PhD in Theology, University of Cambridge, England | 1977 |
Nobel Peace Prize | 1979 |
Honorary PhD from the Catholic University Brussels, Belgium | 1982 |
Honorary U.S. citizenship (only the 4th person to receive this honour) | 1996 |
Congressional Gold Medal | 1997 |
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