सी. वी. रमन

सी.वी. रमन की बायोग्राफी


पूरा नाम  – चंद्रशेखर वेंटकरमन
जन्म       – 7 नवंबर, 1888
जन्मस्थान – तिरुचिरापल्ली (तमिलनाडू)
पिता       – चंद्रशेखर अय्यर
माता       – पार्वती अम्मल
शिक्षा      – 1906 में M.Sc. (भौतिक शास्त्र)
विवाह     – लोकसुंदरी
उपलब्धि  - रमन प्रभाव की खोज 

बचपन व शिक्षा 

चंद्रशेखर वेंकटरमन का जन्म 7 नवम्बर 1888 में तिरुचिरापल्‍ली, तमिलनाडु में हुआ था। उनके पिता श्री चन्द्रशेखर अय्यर गणित व फिजिक्स विषय के लेक्चरर थे। उनकी माता जी श्रीमती पार्वती अम्मल एक सुसंस्कृत परिवार की महिला थीं। अतः प्रारम्भ से ही घर में शैक्षणिक माहौल था जिसने बालक वेंकट को विज्ञान की ओर आकर्षित किया। वेंकटरमन की प्रारम्भिक शिक्षा विशाखापत्तनम में ही हुई। जबकि उच्च शिक्षा के लिए वे मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज चले गए।

सरकारी नौकरी 
सर सी.वी रमन के समय विज्ञान के क्षेत्र में अधिक भारतीय रूचि नहीं लेते थे। चद्रशेखर वेंकटरमन के मन में भी अब तक वैज्ञानिक बनने का ख़याल नहीं आया था। इसीलिए वे उस समय की सबसे कठिन प्रतियोगी परीक्षाओं में से एक में बैठे और प्रथम आये। जिसके फलस्वरूप वे  असिस्टेंट एकाउटेंट जनरल जैसे प्रतिष्ठित पद के लिए चुन लिए गए।

सरकारी नौकरी से विज्ञान
रमन चाहते तो ज़िन्दगी भर यह आराम और रुतबे की नौकरी कर सकते थे। लेकिन कहते हैं न –

किसी महान इन्सान की सब से बड़ी पहचान होती है की वह संतुष्ट हो कर बैठे नहीं रहते हैं,।


सी.वी. रमन भी कुछ ऐसे ही मिजाज के थे, वह सरकारी नौकरी से संतुष्ट हो कर बैठे नहीं रहे चूँकि उनकी मंज़िल तो कुछ और ही थी।

सी.वी. रमन ने सरकारी नौकरी से दिया त्यागपत्र



दस साल तक नौकरी करने के बाद वर्ष 1917 में सी.वी. रमन ने सरकारी नौकरी को अलविदा कह दिया। उन्हे उस समय कलकत्ता के एक नये साइंस कॉलेज में भौतिक शास्त्र अध्यापन कार्य के लिए उन्हे प्रस्ताव मिला था, जिसे उन्होने स्वीकार किया और वह उस कार्य में लग गए। विज्ञान क्षेत्र से जुड़े कॉलेज में काम कर के सी.वी. रमन को काफी संतुष्टि मिली। उस कॉलेज के विद्यार्थी भी सी.वी. रमन की शिक्षा से अत्यंत प्रभावित थे। कुछ ही समय में वह सभी स्टूडेंट्स के प्रिय अध्यापक बन गए।

रमन प्रभाव 

यह खोज उन्होंने अपने कुछ शिष्यों के साथ मिलकर वर्षों के अनुसंधान के बाद 28 फरवरी वर्ष 1928 को की थी।
इस खोज से यह पता चला था कि –

जब लाइट किसी ट्रांसपेरेंट माध्यम, चाहे वो सॉलिड, लिक्विड या गैस हो से गुजरती है तो उसके नेचर और बिहेवियर में चेंज आ जाता है।


इस खोज का प्रयोग विभीन केमिकल कंपाउंड्स की आंतरिक संरचना समझने में किया जाता है।
सर रमन की इस खोज को सबसे पहले जर्मन वैज्ञानिक Peter Pringsheim और उन्होंने ही इस पक्रिया को Raman Effect का नाम दिया था.
नोबेल पुरस्कार 
सन 1930 में C V Raman को ‘नोबेल पुरस्कार’ के लिए चुना गया। रुसी वैज्ञानिक चर्ल्सन, यूजीन लाक, रदरफोर्ड, नील्स बोअर, चार्ल्स कैबी और विल्सन जैसे वैज्ञानिकों ने नोबेल पुरस्कार के लिए रमन के नाम को प्रस्तावित किया था। उनके इस आत्मविश्वास से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि सी. वी. रमन असाधारण प्रतिभा के धनी थे।

उन्होंने नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित होने से पहले ही स्टाकहोम जाने का हवाई टिकट बुक करा लिया था। पुरस्कार लेने के लिए वे अपनी पत्नी के साथ समय के पहले ही स्टाकहोम पहुंच गए।


सन 1909 में जे. एन. टाटा ने भारत में वैज्ञानिक प्रतिभाओं के विकास के लिए बैंगलोर में भारतीय विज्ञान संस्थान की स्थापन की। इस संस्थान के लिए मैसूर नरेश ने 150 हेक्टेयर जमीन प्रदान की थी। अंग्रेजी हुकूमत को विश्वास में लेकर संस्थान का निर्माण कार्य शुरु हुआ निर्माण कार्य पूर्ण होने पर अंग्रेजी हुकूमत ने वहां अपना निदेशक नियुक्त किया। संस्था के सदस्य भी अंग्रेजी ही थे।


सी.वी.रमण की मृत्यु
रमन की खोज के व्दारा ही मनुष्य अपनी रोटिना का चित्र स्वयं ही देख सकता है। वह यह भी देख सकता है की उसकी आंखें कैसे काम कराती हैं? यह खोज उन्होंने अपनी मृत्यु से कुछ वर्ष पहले की थी। वे लगभग 82 वर्षों तक हमारे बीच रहे।

21 नवंबर, सन 1970 को उनकी आत्मा परमात्मा में विलीन हो गई। आज वे हमारे बीच न होकर भी अपनी खोज ‘रमन प्रभाव’ के लिए पूरे सम्मान से याद किए जाते हैं।


सी.वी.रमण  – 21 नवंबर, सन 1970 उनका मृत्यु हो गयी।
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