Milkha singh Biography in hindi:: jeevangatha.com




जन्म: 20 नवम्बर 1929, गोविन्दपुरा (पाकिस्तान)
कार्य क्षेत्र: पूर्व 400 मीटर धावक

उपलब्धियां: 1958 के एशियाई खेलों में 200 मी व 400 मी में स्वर्ण पदक, 1958 के कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण पदक, 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक

मिलखा सिंह आज तक भारत के सबसे प्रसिद्ध और सम्मानित धावक हैं। इन्होने रोम के 1960 ग्रीष्म ओलंपिक और टोक्यो के 1964 ग्रीष्म ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व किया था। उनको “उड़न सिख” का उपनाम दिया गया था। 1960 के रोम ओलंपिक खेलों में उन्होंने पूर्व ओलंपिक कीर्तिमान को ध्वस्त किया लेकिन पदक से वंचित रह गए। इस दौड़ के दौरान उन्होंने ऐसा राष्ट्रिय कीर्तिमान स्थापित किया जो लगभग 40 साल बाद जाकर टूटा।
::Milkha singh Biography in hindi
प्रारंभिक जीवन

मिल्खा सिंह का जन्म अविभाजित भारत के पंजाब में एक सिख राठौर परिवार में 20 नवम्बर 1929 को हुआ था। अपने माँ-बाप की कुल 15 संतानों में वह एक थे। उनके कई भाई-बहन बाल्यकाल में ही गुजर गए थे। भारत के विभाजन के बाद हुए दंगों में मिलखा सिंह ने अपने माँ-बाप और भाई-बहन खो दिया। अंततः वे शरणार्थी बन के ट्रेन द्वारा पाकिस्तान से दिल्ली आए। दिल्ली में वह अपनी शदी-शुदा बहन के घर पर कुछ दिन रहे। कुछ समय शरणार्थी शिविरों में रहने के बाद वह दिल्ली के शाहदरा इलाके में एक पुनर्स्थापित बस्ती में भी रहे।

ऐसे भयानक हादसे के बाद उनके ह्रदय पर गहरा आघात लगा था। अपने भाई मलखान के कहने पर उन्होंने सेना में भर्ती होने का निर्णय लिया और चौथी कोशिश के बाद सन 1951 में सेना में भर्ती हो गए। बचपन में वह घर से स्कूल और स्कूल से घर की 10 किलोमीटर की दूरी दौड़ कर पूरी करते थे और भर्ती के वक़्त क्रॉस-कंट्री रेस में छठे स्थान पर आये थे इसलिए सेना ने उन्हें खेलकूद में स्पेशल ट्रेनिंग के लिए चुना था।
::Milkha singh Biography in hindi
धावक के तौर पर करियर
सेना में उन्होंने कड़ी मेहनत की और 200 मी और 400 मी में अपने आप को स्थापित किया और कई प्रतियोगिताओं में सफलता हांसिल की। उन्होंने सन 1956 के मेर्लबोन्न ओलिंपिक खेलों में 200 और 400 मीटर में भारत का प्रतिनिधित्व किया पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनुभव न होने के कारण सफल नहीं हो पाए लेकिन 400 मीटर प्रतियोगिता के विजेता चार्ल्स जेंकिंस के साथ हुई मुलाकात ने उन्हें न सिर्फ प्रेरित किया बल्कि ट्रेनिंग के नए तरीकों से अवगत भी कराया।

इसके बाद सन 1958 में कटक में आयोजित राष्ट्रिय खेलों में उन्होंने 200 मी और 400 मी प्रतियोगिता में राष्ट्रिय कीर्तिमान स्थापित किया और एशियन खेलों में भी इन दोनों प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक हासिल किया। साल 1958 में उन्हें एक और महत्वपूर्ण सफलता मिली जब उन्होंने ब्रिटिश राष्ट्रमंडल खेलों में 400 मीटर प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किया। इस प्रकार वह राष्ट्रमंडल खेलों के व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाले स्वतंत्र भारत के पहले खिलाडी बन गए। इसके बाद उन्होंने सन 1960 में पाकिस्तान प्रसिद्ध धावक अब्दुल बासित को पाकिस्तान में पिछाडा जिसके बाद जनरल अयूब खान ने उन्हें ‘उड़न सिख’ कह कर पुकारा।

रोम ओलिंपिक खेल, 1960

रोम ओलिंपिक खेल शुरू होने से कुछ वर्ष पूर्व से ही मिल्खा अपने खेल जीवन के सर्वश्रेष्ठ फॉर्म में थे और ऐसा माना जा रहा था की इन खेलों में मिल्खा पदक जरूर प्राप्त करेंगे। रोम खेलों से कुछ समय पूर्व मिल्खा ने फ्रांस में 45.8 सेकंड्स का कीर्तिमान भी बनाया था। 400 में दौड़ में मिल्खा सिंह ने पूर्व ओलिंपिक रिकॉर्ड तो जरूर तोड़ा पर चौथे स्थान के साथ पदक से वंचित रह गए। 250 मीटर की दूरी तक दौड़ में सबसे आगे रहने वाले मिल्खा ने एक ऐसी भूल कर दी जिसका पछतावा उन्हें आज भी है। उन्हें लगा की वो अपने आप को अंत तक उसी गति पर शायद नहीं रख पाएंगे और पीछे मुड़कर अपने प्रतिद्वंदियों को देखने लगे जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा और वह धावक जिससे स्वर्ण की आशा थी कांस्य भी नहीं जीत पाया। मिल्खा को आज तक उस बात का मलाल है। इस असफलता से सिंह इतने निराश हुए कि उन्होंने दौड़ से संन्यास लेने का मन बना लिया पर बहुत समझाने के बाद मैदान में फिर वापसी की।

इसके बाद 1962 के जकार्ता में आयोजित एशियन खेलों में मिल्खा ने 400 मीटर और 4 X 400 मीटर रिले दौड़ में स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने 1964 के टोक्यो ओलिंपिक खेलों में भाग लिया और उन्हें तीन स्पर्धाओं (400 मीटर, 4 X 100 मीटर रिले और 4 X 400 मीटर रिले) में भाग लेने के लिए चुना गया पर उन्होंने 4 X 400 मीटर रिले में भाग लिया पर यह टीम फाइनल दौड़ के लिए क्वालीफाई भी नहीं कर पायी।

मिल्खा द्वारा रोम ओलिंपिक में स्थापित राष्ट्रिय कीर्तिमान को धावक परमजीत सिंह ने सन 1998 में तोड़ा।
::Milkha singh Biography in hindi
बाद का जीवन

सन 1958 के एशियाई खेलों में सफलता के बाद सेना ने मिल्खा को ‘जूनियर कमीशंड ऑफिसर’ के तौर पर पदोन्नति कर सम्मानित किया और बाद में पंजाब सरकार ने उन्हें राज्य के शिक्षा विभाग में ‘खेल निदेशक’ के पद पर नियुक्त किया। इसी पद पर मिल्खा सन 1998 में सेवानिवृत्त हुए।

वर्ष 1958 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया पर मिल्खा ने सन 2001 में भारत सरकार द्वारा ‘अर्जुन पुरस्कार’ के पेशकश को ठुकरा दिया।

मिल्खा सिंह ने अपने जीवन में जीते सारे पदकों को राष्ट्र के नाम कर दिया। शुरू में उन्हें जवाहर लाल नेहरु स्टेडियम में रखा गया था पर बाद में उन्हें पटियाला के एक खेल म्यूजियम में स्थानांतरित कर दिया गया। वर्ष 2012 में उन्होंने रोम ओलिंपिक के 400 मीटर दौड़ में पहने जूते एक चैरिटी की नीलामी में दे दिया।

वर्ष 2013 में मिल्खा ने अपनी बेटी सोनिया संवलका के साथ मिलकर अपनी आत्मकथा ‘The Race of My Life’ लिखी। इसी पुस्तक से प्रेरित होकर हिंदी फिल्मों के मशहूर निर्देशक राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने ‘भाग मिल्खा भाग’ नामक फिल्म बनायी। इस फिल्म में मिल्खा का किरदार मशहूर अभिनेता फरहान अख्तर ने निभाया।
::Milkha singh Biography in hindi
निजी जीवन

मिल्खा सिंह ने भारतीय महिला वॉलीबॉल के पूर्व कप्तान निर्मल कौर से सन 1962 में विवाह किया। कौर से उनकी मुलाकात सन 1955 में श्री लंका में हुई थी। इनके तीन बेटियां और एक बेटा है। इनका बेटा जीव मिल्खा सिंह एक मशहूर गोल्फ खिलाडी है। सन 1999 में मिल्खा ने शहीद हवलदार बिक्रम सिंह के सात वर्षीय पुत्र को गोद लिया था। मिल्खा सम्प्रति में चंडीगढ़ शहर में रहते हैं।

दोस्तों यह पोस्ट आपको कैसी लगी कृपया हमें कमेंट के माध्यम से बताएं like करें share करें ...

धन्यवाद ....
Previous article
Next article

Leave Comments

एक टिप्पणी भेजें

Article Top Ads

Article Center Ads 1

Ad Center Article 2

Ads Under Articles