अलेक्जेंडर फ्लेमिंग जीवनी :: Biography of Alexander Fleming in Hindi

अलेक्जेंडर फ्लेमिंग जीवनी - Biography of Alexander Fleming in Hindi Jeewani


पेन्सिलिन के आविष्कारक अलेक्जेंडर फ्लेमिंग  (6 अगस्त 1881 – 11 मार्च 1955)), स्कॉटलैण्ड के जीववैज्ञानिक एवं औषधिनिर्माता (pharmacologist) थे। उनकी प्रसिद्धि पेनिसिलिन के आविष्कारक के रूप में है (१९२८)। उन्होने जीवाणुविज्ञान (बैक्टिरिओलॉजी), रोग-प्रतिरक्षा-विज्ञान ९immunology) एवं रसचिकित्सा (केमोथिरैपी) आदि विषयों के उपर अनेक शोधपत्र प्रकाशित किये। 
उन्होने सन् १९२३ में लिसोजाइम (lysozyme) नामक एंजाइम की खोज भी की। पेनिसिलिन के आविष्कार के लिये उन्हें सन् १९४५ में संयुक्त रूप से चिकित्सा का नोबेल सम्मान दिया गया।

प्रथम विश्व युद्ध के समय फ्लेमिंग बैक्टीरियोलाजिस्ट आल्मरथ राइट (Almroth Wright) को असिस्ट कर रहा था। उन्होंने पाया कि एण्टीसेप्टिक जख्म के बाहरी हिस्से के लिए तो करगर होते हैं, लेकिन शरीर के भीतरी हिस्सों के लिए हानिकारक होते हैं। क्योंकि ये शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को समाप्त कर देते हैं। एक एक्सपेरीमेन्ट के द्वारा फ्लेमिंग ने दिखाया कि एण्टीसेप्टिक किस तरह रोग प्रतिरोधक क्षमता को रोग से भी ज्यादा तेजी से खत्म करते हैं। आल्मरथ राइट ने फ्लेमिंग की खोज की पुष्टि की लेकिन इसके बावजूद सेना के चिकित्सकों ने एण्टीसेप्टिक (Antiseptic) का प्रयोग जारी रखा जबकि घायलों की दशा इससे बिगड़ती गयी।

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उसी समय फ्लेमिंग ने एक क्रान्तिकारी खोज की। 

वह उस समय स्टैफिलोकोकी नामक बैक्टीरिया (Staphylococcus Bacteria) पर शोध कर रहा था। एक सुबह जब वह लैब में पहुंचा तो उसने देखा कि बैक्टीरिया कल्चर की प्लेट पर थोड़ी सी फंफूंदी लगी चुकी है। और खास बात यह थी कि जितनी दूर यह फंफूदी उगी हुई थी उतनी दूर बैक्टीरिया का नामोनिशान नहीं था। उसने इस फफूंदी पर और रिसर्च की और पाया कि यह बैक्टीरिया को मारने में पूरी तरह कारगर थी। शुरूआत में फ्लेमिंगने इसका नाम दिया मोल्ड जूस, जो बाद में पेनिसिलीन में परिवर्तित हो गया। यही थी विश्व की पहली एण्टीबायोटिक यानि बैक्टीरिया किलर।

फ्लेमिंग (Alexander Fleming) एक दिन पेट्री डिश में कुछ प्रयोग कर रहे थे तो उन्होंने देखा कि उसमे फफूंद उग आयी है | जहा जहा फफूंद उगी है पेट्री डिश में वही पर बैक्टीरिया मर गये है | उन्होंने देखा कि यह फफूंद पेनिसिलियम नौटाडम है | इस घटना को उन्होंने फिर दोहराया | इस फफूंद के नमूने उन्होंने उगाये और जीवाणुओं पर इनका प्रभाव देखा तो उन्होंने पाया कि इस फफूंद के रस से रोग के जीवाणु मर जाते है | यह उनके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण आविष्कार था |


दो अन्य वैज्ञानिकों ने सन 1938 में इसे स्थिर कर दिया | उसके बाद इस औषधि को सन 1941 में दुसरे विश्वयुद्ध में घायल हुए 6 रोगियों पर प्रयोग किया गया | इसके अच्छे परिणाम प्राप्त हुए लेकिन पेनिसिलिन की कमी हो जाने के कारण ये 6 रोगी मर गये | इसी वर्ष के अंत में वे पेनिसिलिन अलग करने की विधि के सिलसिले में अमरीका गये | वहा उन्होंने अनेक वैज्ञानिकों से पेनिसिलिन अलग करने की विधि पर विचार विमर्श किया | आखिरकार इसे अलग करने का तरीका खोज लिया गया

देखते ही देखते यह औषधि संक्रामक रोगों को ठीक करने का सरताज बन गयी | दुसरे विश्वयुद्ध में घायलों को ठीक करने में पेनिसिलिन रामबाण साबित हुयी | इसके बाद में पेनिसिलिन के इंजेक्शन और गोलियाँ अनेक संक्रामक रोगों में प्रयोग की गयी | लगभग सन 1970 तक शल्य चिकित्सा के रोगियों पर इस औषधि का भरपूर प्रयोग किया गया | सन 1970 के दशक में इस औषधि की क्रियाशीलता से लोग मरने लगे तब से इसका प्रयोग न के बराबर हो गया |
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प्रकिंव

प्रकिंव को अंग्रेजी में एंजाइम कहा जाता है जो रासायनिक क्रिया को उत्प्रेरित करने वाले प्रोटीन होते है. इनके लिये एंजाइम शब्द का प्रयोग सन 1878 में कुह्वे ने पहली बार किया था. प्रकिन्वों के स्रोत मुख्यतः सूक्ष्मजीव, और फिर पौधे तथा जंतु होते हैं किसी प्रकिंव के अमीनो अम्ल में परिवर्तन द्वारा उसके गुणधर्म में उपयोगी परिवर्तन लाने हेतु अध्ययन को प्रकिंव अभियांत्रिकी या एंजाइम इंजीनियरिंग कहते हैं. एंजाइम इंजीनियरिंग का एकमात्र उद्देश्य औद्द्योगिक अथवा अन्य उद्द्योगों के लिये अधिक क्रियाशील, स्थिर एवं उपयोगी एन्जाईमों को प्राप्त करना है. पशुओं से प्राप्त रेनेट भी एक प्रकिंव ही होता है, ये शरीर में होने वाली जैविक क्रियाओं के उत्प्रेरक होने के साथ ही आवश्यक अभिक्रियाओं के लिए शरीर में विभिन्न प्रकार के प्रोटीन का निर्माण करते हैं.

इनकी भूमिका इतनी महत्वपूर्ण है कि ये या तो शरीर की रासायनिक क्रियाओं को आरंभ करते हैं या फिर उनकी गति बढ़ाते हैं. इनका उत्प्रेरण का गुण एक चक्रीय प्रक्रिया है. सभी उत्प्रेरकों की ही भांति, प्रकिंव भी अभिक्रिया की उत्प्रेरण ऊर्जा को कम करने का कार्य करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अभिक्रिया की गति में वृद्धि हो जाती है. अधिकांश प्रकिणव अभिक्रियाएँ अन्य गैर-उत्प्रेरित अभिक्रियाओं की तुलना में लाखों गुना तेज गति से होती हैं. इसी प्रकार अन्य सभी उत्प्रेरण अभिक्रियाओं की तरह ही प्रकिणव भी अभिक्रिया में खपत नहीं हैं, न ही अभिक्रिया समय में परिवर्तन करते हैं.

शुद्धि और स्थिरीकरण

ऑक्सफ़ोर्ड में, अर्नस्ट बोरिस चेन और एडवर्ड अब्राहम एंटीबायोटिक के आणविक संरचना का अध्ययन कर रहे थे। इब्राहीम पेनिसिलिन की सही संरचना का प्रस्ताव करने वाला पहला था। टीम ने 1 9 40 में अपना पहला परिणाम प्रकाशित करने के कुछ समय बाद ही, फ्लेमिंग ने हॉवर्ड फ्लोरे, चेन के विभाग का प्रमुख, पर फोन किया कि वह अगले कुछ दिनों के भीतर जा रहेगा। जब चेन ने सुना कि फ़्लेमिंग आ रहा है, तो उन्होंने कहा, "अच्छा भगवान! मैंने सोचा कि वह मर गया है।"

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नॉर्मन हीटले ने सुझाव दिया कि पेनिसिलिन के सक्रिय संघटक को अपनी अम्लता को बदलकर पानी में वापस स्थानांतरित किया जाए। इसने जानवरों पर परीक्षण शुरू करने के लिए पर्याप्त दवा तैयार की ऑक्सफ़ोर्ड टीम में बहुत से लोग शामिल थे, और एक समय पर पूरे डुन स्कूल अपने उत्पादन में शामिल था।

टीम ने 1 9 40 में पेनिसिलिन को एक प्रभावी पहला स्थिर रूप में शुद्ध करने की एक विधि विकसित करने के बाद कई नैदानिक ​​परीक्षणों की शुरुआत की और उनकी अद्भुत सफलता ने टीम को 1 9 45 में बड़े पैमाने पर उत्पादन और जन वितरण के तरीकों को विकसित करने के लिए प्रेरित किया।

फ्लेमिंग पेनिसिलिन के विकास में अपने हिस्से के बारे में बहुत ही विनम्र था, उन्होंने "फ्लेमिंग मिथ" के रूप में अपनी प्रसिद्धि का वर्णन किया और उन्होंने प्रयोगशाला जिज्ञासा को एक व्यावहारिक दवा में बदलने के लिए फ्लोरि और चेन की प्रशंसा की।



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