श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी
इनका बचपन मुख्यत कुंभकोणम में बिता, और कुंभकोणम को प्राचीन मंदिरों के लिए जाना जाता है इनके पिताजी साड़ी के एक दुकान में क्लर्क थे और दुकान के बहीखातो का हिसाब रखते थे और साथ में अपनी परिवार के आजीवका के लिए वेदों का पाठ भी किया करते थे जबकि इनकी माता गृहणी के साथ साथ पास के मंदिर की गायिका भी थी
दिसंबर 1889 में, रामानुजन को चेचक की बीमारी हो गयी। इस बीमारी से पिछले एक साल में उनके जिले के हजारो लोग मारे गए थे। लेकिन रामानुजन जल्द ही इस बीमारी से ठीक हो गये थे। इसके बाद वे अपने माता के साथ मद्रास (चेन्नई) के पास के गाव कांचीपुरम में माता-पिता के घर में रहने चले गए।
नवंबर 1891 और फीर 1894 में, उनकी माता ने दो और बच्चों को जन्म दिया। लेकिन फिर से उनके दोनों बच्चो की बचपन में ही मृत्यु हो गयी।
1 अक्टूबर 1892 को श्रीनिवास रामानुजन / Srinivasa Ramanujan को स्थानिक स्कूल में डाला गया। मार्च 1894 में, उन्हें तामील मीडियम स्कूल में डाला गया।
उनके नाना के कांचीपुरम के कोर्ट में कर रहे जॉब को खो देने के बाद, रामानुजन और उनकी माता कुम्भकोणम गाव वापिस आ गयी और उन्होंने रामानुजन को कंगयां प्राइमरी स्कूल में डाला। जब उनके दादा का देहांत हुआ, तो रामानुजन को उनके नाना के पास भेज दिया गया। जो बाद में मद्रास में रहने लगे थे।
रामानुजन को मद्रास में स्कूल जाना पसन्द नही था, इसीलिए वे ज्यादातर स्कूल नही जाते थे। उनके परिवार ने रामानुजन के लिये एक चौकीदार भी रखा था ताकि रामानुजन रोज स्कूल जा सके। और इस तरह 6 महीने के भीतर ही रामानुजन कुम्भकोणम वापिस आ गये। जब ज्यादातर समय रामानुजन के पिता काम में व्यस्त रहते थे। तब उनकी माँ उनकी बहोत अच्छे से देखभाल करती थी।
रामानुजन को अपनी माता से काफी लगाव था। अपनी माँ से रामानुजन ने प्राचीन परम्पराओ और पुराणों के बारे में सीखा था। उन्होंने बहोत से धार्मिक भजनों को गाना भी सीख लिया था ताकि वे आसानी से मंदिर में कभी-कभी गा सके। ब्राह्मण होने की वजह से ये सब उनके परीवार का ही एक भाग था। कंगयां प्राइमरी स्कूल में, रामानुजन एक होनहार छात्र थे।
बस 10 साल की आयु से पहले, नवंबर 1897 में, उन्होंने इंग्लिश, तमिल, भूगोल और गणित की प्राइमरी परीक्षा उत्तीर्ण की और पुरे जिले में उनका पहला स्थान आया। उसी साल, रामानुजन शहर की उच्च माध्यमिक स्कूल में गये जहा पहली बार उन्होंने गणित का अभ्यास किया ।
श्रीनिवास रामानुजन का संघर्षमय जीवन
जब रामानुजन का पढाई से पूरी तरह नाता टूट जाने के बाद आने वाले पाच साल इनके जीवन के लिए बहुत ही संघर्षमय था इस समय हमारा देश भारत अंग्रेजो के अधीनता में था चारो तरफ परतंत्रता की बेडियो में जकड़े भारत में कही भी न रोजगार के अवसर थे और न ही लोगो के जीवन जीने के लिए कोई उद्देश्य था
हर कोई बस अपने देश भारत को आजाद देखना चाहता था ऐसे में रामानुजन के पास भी न कोई नौकरी थी और न ही नौकरी पाने के लिए कोई बड़ी डिग्री जिसकी चिंता से रामानुजन का स्वास्थ्य दिन पर दिन बिगड़ता जा रहा था जिसके चलते डाक्टरों ने इन्हें घर जाकर आराम करने का सलाह दिए ऐसे में रामानुजन का गणित के प्रति प्रेम ही उन्हें अपने जीवन में आगे बढने की प्रेरणा दिया
श्रीनिवास रामानुजन के प्रमुख कार्य
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रामानुजन और इनके द्वारा किए गए अधिकांश कार्य अभी भी वैज्ञानिकों के लिए अबूझ पहेली बने हुए हैं। एक बहुत ही सामान्य परिवार में जन्म ले कर पूरे विश्व को आश्चर्यचकित करने की अपनी इस यात्रा में इन्होने भारत को अपूर्व गौरव प्रदान किया।
श्रीनिवास रामानुजन अधिकतर गणित के महाज्ञानी भी कहलाते है। उस समय के महान व्यक्ति लोन्हार्ड यूलर और कार्ल जैकोबी भी उन्हें खासा पसंद करते थे। जिनमे हार्डी के साथ रामानुजन ने विभाजन फंक्शन P(n) का अभ्यास कीया था। इन्होने शून्य और अनन्त को हमेशा ध्यान में रखा और इसके अंतर्सम्बन्धों को समझाने के लिए गणित के सूत्रों का सहारा लिया। वह अपनी विख्यात खोज गोलिय विधि (Circle Method) के लिए भी जाने जाते है।
श्रीनिवास रामानुजन का अंतिम जीवन
आजतक मैंने लोगो को गणित के बारे में सिखाया है और मेरी जिन्दगी में पहली बार मै अपने शिष्य रामानुजन से मै सीख रहा हु और फिर प्रोफेसर हार्डी के कहने पर पहली बार रामानुजन ने पहली बार लन्दन की धरती पर कदम रखा और तब तक रामानुजन 3000 से अधिक प्रमेयो को अपने रजिस्टर में लिख चुके थे लेकिन अपने शर्मीले और शांत स्वाभाव के कारण लंदन में खुद को फिट नही पा रहे थे साथ में रामानुजन को वहां का वातावरण भी उन्हें रास नही आया
जिसके कारण उन्हें क्षयरोग हो गया और उस ज़माने में इस रोग की दवा नही होती थी जिसके कारण कुछ दिनों तक वहां रहे फिर इसी उपरांत उन्हें कैंब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा बी.ए. की डिग्री भी हासिल हुई और इस दौरान प्रोफेसर हार्डी के साथ मिलकर गणित के अनेक नये सूत्रों की खोज किया
फिर अपने बीमारी के चलते वे 5 साल उपरांत वे इंग्लैंड से भारत लौट आये और फिर भी रामानुजन का स्वास्थ्य दिन पर दिन ख़राब होता जा रहा था और इसी दौरान रामानुजन ने मॉक थीटा फंक्शन पर एक उच्च स्तरीय शोधपत्र भी लिखा जिसका उपयोग वरन गणित नही चिकित्साविज्ञान में कैंसर को समझने के लिए भी किया जाता है जो की अपने आप में अद्भुत और अकल्पनीय भी है
लेकिन जीवन शुरू हुआ है तो इसका अंत भी निश्चित है जिसका सामना हर किसी को करना पड़ता है लेकिन किसी ने भी नही सोचा था की मात्र 33 वर्ष की आयु में रामानुजन 26 अप्रैल 1920 को इस दुनिया को छोड़ जायेगे लेकिन रामानुजन का जीवन बस इतना ही था लेकिन उस समय जो भी रामानुजन के मृत्यु के बारे में सुना स्तब्ध सा रह गया शायद माँ सरस्वती के इस लाल का जीवन शायद इतना ही था और रामानुजन की मृत्यु गणित क्षेत्र में एक महान क्षति थी जिसकी भरपाई करना मुश्किल है
श्रीनिवास रामानुजन के गणित में किये गये कार्यो के प्रति जितना सम्मान दिया जाय वो कम ही है रामानुजन एक ऐसे पहले व्यक्ति थे जो अंग्रेजो द्वारा रॉयल सोसाइटी का फेलो भी नामित किया गया था जो उस ज़माने में किसी भारतीय को ऐसा सम्मान मिलना भी अपने आप में बड़ी बात थी इसी कड़ी में गणितज्ञो के सम्मान में रामानुजन पुरष्कार और रामानुजन इंस्टीट्यूट की भी स्थापना की गयी है और भारत सरकार ने रामानुजन को भारत रत्न के पुरष्कार से भी नवाजा है और गूगल ने भी इनके 125 वी जन्मदिन पर अपने Homepage पर स्थान दिया था और 2014 में इनके जीवन पर आधारित तमिल फिल्म ‘रामानुजन का जीवन’ भी बनाया गया है
श्रीनिवास रामानुजन की मात्र 33 वर्ष थी लेकिन इनका जीवन गणित के प्रति पूरी तरह से समर्पण रहा इनकी जीवन से हमे यही शिक्षा मिलती है जीवन लम्बा हो या छोटा, अगर खुद पर विश्वास हो तो आपके आगे चाहे कितनी भी असफलता क्यू न आये लेकिन आपको अपने जीवन में जो हासिल करना चाहते है उसे जरुर पा सकते है इसके लिए आपके इरादों को मजबूत होना चाहिए और जिनके इरादे मजबूत होते है उन्हें फिर कोई नही रोक सकता है ऐसा श्रीनिवास रामानुजन ने अपने जीवन से सिद्ध करके दिखाया है जो की अपने आप में अद्भुत और अकल्पनीय है
श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी
बुधवार, 22 जून 2022
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श्रीनिवास रामानुजन / Srinivasa Ramanujan ज्यादा उम्र तक तो जी नही पाये लेकिन अपने छोटे जीवन में ही उन्होंने लगभग 3900 के आस-पास प्रमेयों का संकलन कीया। इनमें से अधिकांश प्रमेय सही सिद्ध किये जा चुके है। और उनके अधिकांश प्रमेय लोग जानते है। उनके बहोत से परीणाम जैसे की रामानुजन प्राइम और रामानुजन थीटा बहोत प्रसिद्ध है। यह उनके महत्वपूर्ण प्रमेयों में से एक है।
श्रीनिवास रामानुजन का प्रारंभिक जीवन
श्रीनिवास रामानुजन का पूरा नाम श्रीनिवास रामानुजन् अय्यंगर | Srinivasa Ramanujan Iyengar था लेकिन ये रामानुजन / Ramanujan के नाम से सबसे अधिक जाने जाते है इनके पिताजी का नाम श्रीनिवास अय्यंगर और माता का नाम कोमलताम्मल था इनके माता पिता का परिवार ब्राह्मण परिवार से थे इनका जन्म 22 दिसम्बर 1887 को भारत के तमिलनाडु राज्य के कोयम्बटूर में इरोड नामक में हुआ थाइनका बचपन मुख्यत कुंभकोणम में बिता, और कुंभकोणम को प्राचीन मंदिरों के लिए जाना जाता है इनके पिताजी साड़ी के एक दुकान में क्लर्क थे और दुकान के बहीखातो का हिसाब रखते थे और साथ में अपनी परिवार के आजीवका के लिए वेदों का पाठ भी किया करते थे जबकि इनकी माता गृहणी के साथ साथ पास के मंदिर की गायिका भी थी
दिसंबर 1889 में, रामानुजन को चेचक की बीमारी हो गयी। इस बीमारी से पिछले एक साल में उनके जिले के हजारो लोग मारे गए थे। लेकिन रामानुजन जल्द ही इस बीमारी से ठीक हो गये थे। इसके बाद वे अपने माता के साथ मद्रास (चेन्नई) के पास के गाव कांचीपुरम में माता-पिता के घर में रहने चले गए।
नवंबर 1891 और फीर 1894 में, उनकी माता ने दो और बच्चों को जन्म दिया। लेकिन फिर से उनके दोनों बच्चो की बचपन में ही मृत्यु हो गयी।
1 अक्टूबर 1892 को श्रीनिवास रामानुजन / Srinivasa Ramanujan को स्थानिक स्कूल में डाला गया। मार्च 1894 में, उन्हें तामील मीडियम स्कूल में डाला गया।
उनके नाना के कांचीपुरम के कोर्ट में कर रहे जॉब को खो देने के बाद, रामानुजन और उनकी माता कुम्भकोणम गाव वापिस आ गयी और उन्होंने रामानुजन को कंगयां प्राइमरी स्कूल में डाला। जब उनके दादा का देहांत हुआ, तो रामानुजन को उनके नाना के पास भेज दिया गया। जो बाद में मद्रास में रहने लगे थे।
रामानुजन को मद्रास में स्कूल जाना पसन्द नही था, इसीलिए वे ज्यादातर स्कूल नही जाते थे। उनके परिवार ने रामानुजन के लिये एक चौकीदार भी रखा था ताकि रामानुजन रोज स्कूल जा सके। और इस तरह 6 महीने के भीतर ही रामानुजन कुम्भकोणम वापिस आ गये। जब ज्यादातर समय रामानुजन के पिता काम में व्यस्त रहते थे। तब उनकी माँ उनकी बहोत अच्छे से देखभाल करती थी।
रामानुजन को अपनी माता से काफी लगाव था। अपनी माँ से रामानुजन ने प्राचीन परम्पराओ और पुराणों के बारे में सीखा था। उन्होंने बहोत से धार्मिक भजनों को गाना भी सीख लिया था ताकि वे आसानी से मंदिर में कभी-कभी गा सके। ब्राह्मण होने की वजह से ये सब उनके परीवार का ही एक भाग था। कंगयां प्राइमरी स्कूल में, रामानुजन एक होनहार छात्र थे।
बस 10 साल की आयु से पहले, नवंबर 1897 में, उन्होंने इंग्लिश, तमिल, भूगोल और गणित की प्राइमरी परीक्षा उत्तीर्ण की और पुरे जिले में उनका पहला स्थान आया। उसी साल, रामानुजन शहर की उच्च माध्यमिक स्कूल में गये जहा पहली बार उन्होंने गणित का अभ्यास किया ।
श्रीनिवास रामानुजन का संघर्षमय जीवन
जब रामानुजन का पढाई से पूरी तरह नाता टूट जाने के बाद आने वाले पाच साल इनके जीवन के लिए बहुत ही संघर्षमय था इस समय हमारा देश भारत अंग्रेजो के अधीनता में था चारो तरफ परतंत्रता की बेडियो में जकड़े भारत में कही भी न रोजगार के अवसर थे और न ही लोगो के जीवन जीने के लिए कोई उद्देश्य था
हर कोई बस अपने देश भारत को आजाद देखना चाहता था ऐसे में रामानुजन के पास भी न कोई नौकरी थी और न ही नौकरी पाने के लिए कोई बड़ी डिग्री जिसकी चिंता से रामानुजन का स्वास्थ्य दिन पर दिन बिगड़ता जा रहा था जिसके चलते डाक्टरों ने इन्हें घर जाकर आराम करने का सलाह दिए ऐसे में रामानुजन का गणित के प्रति प्रेम ही उन्हें अपने जीवन में आगे बढने की प्रेरणा दिया
श्रीनिवास रामानुजन के प्रमुख कार्य
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रामानुजन और इनके द्वारा किए गए अधिकांश कार्य अभी भी वैज्ञानिकों के लिए अबूझ पहेली बने हुए हैं। एक बहुत ही सामान्य परिवार में जन्म ले कर पूरे विश्व को आश्चर्यचकित करने की अपनी इस यात्रा में इन्होने भारत को अपूर्व गौरव प्रदान किया।
श्रीनिवास रामानुजन अधिकतर गणित के महाज्ञानी भी कहलाते है। उस समय के महान व्यक्ति लोन्हार्ड यूलर और कार्ल जैकोबी भी उन्हें खासा पसंद करते थे। जिनमे हार्डी के साथ रामानुजन ने विभाजन फंक्शन P(n) का अभ्यास कीया था। इन्होने शून्य और अनन्त को हमेशा ध्यान में रखा और इसके अंतर्सम्बन्धों को समझाने के लिए गणित के सूत्रों का सहारा लिया। वह अपनी विख्यात खोज गोलिय विधि (Circle Method) के लिए भी जाने जाते है।
श्रीनिवास रामानुजन का अंतिम जीवन
आजतक मैंने लोगो को गणित के बारे में सिखाया है और मेरी जिन्दगी में पहली बार मै अपने शिष्य रामानुजन से मै सीख रहा हु और फिर प्रोफेसर हार्डी के कहने पर पहली बार रामानुजन ने पहली बार लन्दन की धरती पर कदम रखा और तब तक रामानुजन 3000 से अधिक प्रमेयो को अपने रजिस्टर में लिख चुके थे लेकिन अपने शर्मीले और शांत स्वाभाव के कारण लंदन में खुद को फिट नही पा रहे थे साथ में रामानुजन को वहां का वातावरण भी उन्हें रास नही आया
जिसके कारण उन्हें क्षयरोग हो गया और उस ज़माने में इस रोग की दवा नही होती थी जिसके कारण कुछ दिनों तक वहां रहे फिर इसी उपरांत उन्हें कैंब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा बी.ए. की डिग्री भी हासिल हुई और इस दौरान प्रोफेसर हार्डी के साथ मिलकर गणित के अनेक नये सूत्रों की खोज किया
फिर अपने बीमारी के चलते वे 5 साल उपरांत वे इंग्लैंड से भारत लौट आये और फिर भी रामानुजन का स्वास्थ्य दिन पर दिन ख़राब होता जा रहा था और इसी दौरान रामानुजन ने मॉक थीटा फंक्शन पर एक उच्च स्तरीय शोधपत्र भी लिखा जिसका उपयोग वरन गणित नही चिकित्साविज्ञान में कैंसर को समझने के लिए भी किया जाता है जो की अपने आप में अद्भुत और अकल्पनीय भी है
लेकिन जीवन शुरू हुआ है तो इसका अंत भी निश्चित है जिसका सामना हर किसी को करना पड़ता है लेकिन किसी ने भी नही सोचा था की मात्र 33 वर्ष की आयु में रामानुजन 26 अप्रैल 1920 को इस दुनिया को छोड़ जायेगे लेकिन रामानुजन का जीवन बस इतना ही था लेकिन उस समय जो भी रामानुजन के मृत्यु के बारे में सुना स्तब्ध सा रह गया शायद माँ सरस्वती के इस लाल का जीवन शायद इतना ही था और रामानुजन की मृत्यु गणित क्षेत्र में एक महान क्षति थी जिसकी भरपाई करना मुश्किल है
श्रीनिवास रामानुजन के गणित में किये गये कार्यो के प्रति जितना सम्मान दिया जाय वो कम ही है रामानुजन एक ऐसे पहले व्यक्ति थे जो अंग्रेजो द्वारा रॉयल सोसाइटी का फेलो भी नामित किया गया था जो उस ज़माने में किसी भारतीय को ऐसा सम्मान मिलना भी अपने आप में बड़ी बात थी इसी कड़ी में गणितज्ञो के सम्मान में रामानुजन पुरष्कार और रामानुजन इंस्टीट्यूट की भी स्थापना की गयी है और भारत सरकार ने रामानुजन को भारत रत्न के पुरष्कार से भी नवाजा है और गूगल ने भी इनके 125 वी जन्मदिन पर अपने Homepage पर स्थान दिया था और 2014 में इनके जीवन पर आधारित तमिल फिल्म ‘रामानुजन का जीवन’ भी बनाया गया है
श्रीनिवास रामानुजन की मात्र 33 वर्ष थी लेकिन इनका जीवन गणित के प्रति पूरी तरह से समर्पण रहा इनकी जीवन से हमे यही शिक्षा मिलती है जीवन लम्बा हो या छोटा, अगर खुद पर विश्वास हो तो आपके आगे चाहे कितनी भी असफलता क्यू न आये लेकिन आपको अपने जीवन में जो हासिल करना चाहते है उसे जरुर पा सकते है इसके लिए आपके इरादों को मजबूत होना चाहिए और जिनके इरादे मजबूत होते है उन्हें फिर कोई नही रोक सकता है ऐसा श्रीनिवास रामानुजन ने अपने जीवन से सिद्ध करके दिखाया है जो की अपने आप में अद्भुत और अकल्पनीय है
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